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है। विशिष्ट फलाफल देने की अपेक्षा से महावीर ने 72 प्रकार के स्वप्नों का उल्लेख किया है। उनमें 42 स्वप्न जघन्य एवं अशुभ फल वाले तथा 30 स्वप्न उत्तम फल देने वाले हैं। गंधर्व, राक्षस, भूत, पिशाच, बुक्कस, महिष, सांप, ऊंट, गधा, बिल्ली, तम, दुराचारिणी स्त्री आदि 42 स्वप्न जघन्य हैं।
1. अर्हत्, 2. बुद्ध, 3. हरि, 4. कृष्ण, 5. शंभु, 6. नृप, 7. ब्रह्मा, 8. स्कन्द, 9. गणेश, 10. लक्ष्मी, 11. गौरी, 12. हाथी, 13. गाय, 14. वृषभ, 15. चन्द्र, 16. सूर्य, 17. विमान, 18. भवन, 19. अग्नि, 20. समुद्र, 21. सरोवर, 22. सिंह, 23. रत्नों का ढेर, 24. गिरि, 25. ध्वज, 26. जल से पूर्ण घट, 27. पुरीष, 28. मांस, 29. मत्स्य, 30. कल्पद्रुम, ये 30 स्वप्न महान् एवं उत्तम फल देने वाले हैं , अत: ये महास्वप्न कहलाते हैं। तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती की माताएं इन 30 स्वप्नों में 14 महास्वप्न देखती हैं। वासुदेव की माताएं चौदह स्वप्नों में सात, बलदेव की माता चार, माण्डलिक राजा या भावितात्म अणगार की माता 1 महास्वप्न देखती है।" दिगम्बर परम्परा में तीर्थंकर की माता सोलह, चक्रवर्ती की माता छह, बलदेव की माता सात स्वप्न देखती है। अग्निपुराण के 229 वें अध्याय में शुभाशुभ स्वप्नों के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है।
भगवती सूत्र में 14 ऐसे स्वप्नों का उल्लेख मिलता है, जिससे उस व्यक्ति की तद्भवगामिता का उल्लेख मिलता है। जैसे कोई व्यक्ति यदि स्वप्न में सर्व रत्नमय विमान पर आरोहण करता है, तरंगों से व्याप्त महासागर को कुशलतापूर्वक पार करता है, कुसुमित पद्मसरोवर में प्रवेश करता है, चांदी सोने एवं रत्नों के ढेर पर चढता है, काले या खेत उलझे हुए सूत को सुलझाता है तो वह उसी जन्म में मुक्त होता है।
भगवती सूत्र के अनुसार संवृत, त्यागी एवं संयमी व्यक्ति के द्वारा देखे गए स्वप्न का फल सत्य होता है। वह कभी सांसारिक लालसाओं से युक्त स्वप्न नहीं देखता। टीकाकार ने इसके दो कारण बताए हैं- 1. चित्त की निर्मलता, 2. देवता का अनुग्रह । असंयमी व्यक्ति का स्वप्न, यथार्थ भी हो सकता है और अयथार्थ भी। स्वप्न-फल की अवधि
स्वप्नों का फल मिलने के बारे में भी भारतीय मनीषियों ने पर्याप्त चिन्तन किया है। सामान्यतः रोग, शोक, चिन्ता, कामात एवं मत्त अवस्था में देखे गए स्वप्न निरर्थक होते हैं।
व्याधितेन सशोकेन, चिन्ताग्रस्तेन जंतुना। कामार्तेनाथ मत्तेन, दृष्टः स्वप्नो निरर्थकः॥
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
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