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सामग्री के अध्ययन की योजना बनाई है एवं इस पर काम चल रहा है। इसके तत्काल बाद शौरसेनी प्राकृत साहित्य में निहित गणित तथा उसके बाद जैन आगमेतर साहित्य में उपलब्ध गणितीय विवेचनों को संकलित किया जाना प्रस्तावित है। आगमेतर साहित्य के अन्तर्गत हम आचार्य श्रीधर, महावीर, कुमुदेन्दु, श्रीपति, सिंहतिलक सूरि, ठक्कर फेरू, राजादित्य, अनन्तपाल, महिमोदय, तेजसिंह सूरि, हेमराज आदि जैन आचार्यों एवं विद्वानों के कृतित्व में से गणितीय अभिरुचि की सामग्री संकलित करेंगे। यह हमारा संकलन एवं विश्लेषण अन्ततोगत्वा जैन परम्परा में गणितीय विचारों का विकास शीर्षक महत्त्वाकांक्षी परियोजना में सहायक होगा।
मेरे मन में काफी दिनों में यह परिकल्पना हैं कि Development of Mathematical Thoughts in Jainism शीर्षक सर्वांगपूर्ण पुस्तक का सृजन किया जाये, जिससे विश्व गणितीय इतिहास से जैन गणित के गौरव को सक्षमता के साथ प्रतिस्थापित किया जा सके।
सन्दर्भ :1. गणितसार संग्रह, मू. ले- महावीराचार्य, कन्नड़ अनुवाद सहित सम्पादित डॉ. पद्मावथम्मा,
होम्बुज जैन मठ, हुमचा (कर्नाटक), 2000, अध्याय-1, गाथा 17-19 2. वही, अध्याय-1, गाथा- 16 3. Winternitz, History of Indian Literature, book-2, pp 431-434 4. गणित सार संग्रह, हिन्दी अनुवाद सहित सम्पादित प्रो. लक्ष्मीचन्द्र जैन, जैन संस्कृति
संरक्षक संघ, शोलापुर, 1963 के अन्तर्गत ग्रंथमाला सम्पादकीय- डॉ. हीरालाल जैन एवं डॉ. आ. ने उपाध्ये।
आवश्यक कथा, श्लोक 174 6. भगवती सूत्र, सूत्र-90 7. ठाणं (स्थानांग सूत्र) सूत्र 747, 10/100 8. B. B. Dutt. The Jaina School of Mathematies, P 119. १. लक्ष्मीचन्द्र जैन, आगमों में निहित गणितीय सामग्री का मूल्यांकन पृ. 37 10. ब. ल. उपाध्याय, प्राचीन भारतीय गणित, पृ. 26 11. H.R. Kapadia, Introduction of Ganita Tilak, P, XII. 12. ठाणं, पृ. 926
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तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2006
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