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________________ तमस्काय और ब्लेक होल डॉ. महावीर राज गेलड़ा आकाश में रात्रि के समय आकाश गंगा को हमने कई बार निहारा है। आकाश-गंगा तारों का झुरमुट है। अनेक तारे समूह में होने से इनकी चमक-दमक साधारण व्यक्ति को आकर्षित करती हैं। ये तारे गति करते हैं, स्थिर नहीं है। इनकी गति बहुत धीमी प्रतीत होती हैं, क्योंकि ये बहुत दूर है। दूरी के कारण इनका आकार भी छोटा प्रतीत होता है। यद्यपि कई तारे सूर्य के आकार से बहुत बड़े हैं। इस आकाश गंगा के सघन प्रकाश के बीच गहरे गढ़े हो सकते हैं, ऐसा अनुमान संभव नहीं था। जर्मनी में म्यूनिख के निकट मैक्स-प्लांक इन्स्टीट्यूट, गारचिंग में अनुसंधानों से ज्ञात हुआ कि आकाश गंगा के मध्य सघन धूल के बादल है। अमेरिका के वैज्ञानिक जॉन व्हीलर ने 1969 में इन गढ़ों को ब्लेक होल का नाम दिया। यद्यपि ब्लेक होल का वैज्ञानिक इतिहास दो सौ वर्ष पुराना रहा है। पिछले 30-40 वर्षों में ब्लेक होल के संबंध में जो जानकारी मिली है वह नई है लेकिन अधूरी है। तमस्काय क्या है? जैन आगम भगवती सूत्र में तमस्काय और कृष्णराजि का वर्णन आया है। इसके अनुसार हमारी पृथ्वी के समान ही आकाश में सुदूर छोर पर कृष्ण वर्ण के पृथ्वी के शिलाखण्ड हैं जिन्हें कृष्ण-राजि कहा है। इनकी गहरी काली छाया चारों और विस्तृत होती है। इन शिलाखण्डों की काली धूल से पृथ्वी के एक विशेष समुद्र का सूक्ष्म जल शिखा के रूप में आकर्षित होता है। यह जल शिखा भयंकर रूप से काली प्रतीत होती है। इस जल-शिखा को तमस्काय कहा है। ठाणं आगम में निम्न प्रकार का उल्लेख है __ "अरुणवरद्वीप जम्बूदीप से अंख्यातवां द्वीप है। उसकी बाहरी वेदिका के अन्त में अरूणवर संमुद्र में 42 हजार योजन जाने पर एक प्रदेश (तुल्य अवगाहन) वाली श्रेणी है और वह 1721 योजन ऊँची जाने के पश्चात वलय रूप में विस्तृत तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2005 - 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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