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2. अहितासणयाए- अहितकर भोजन- हित-मित और ऋत भोजन के अलावा फास्टफुड, अतिठण्डा, अतिगरम, नशीली चीजें रोग का हेतु बनती हैं।
3. अतिणिद्दाए- (अतिनिद्रा) अत्यधिक सोने से श्वास रेट बढ़ जाती है। कफ की मात्रा बढ़ती है।
4. अतिजागरितेणं- ( अत्यधिक जागना)
5. उच्चारनिरोहेणं- (मलबाधा को रोकना)
6. पासवणणिरोहेणं- (मूत्र बाधा रोकना) 7. अद्धाणगमणेणं- ( पंथगमन)
8. भोयण पडिकुलताए - ( प्रतिकूल भोजन )
9. इंदियत्थविकोवणयाए - (इंद्रिय विकोपन)
आयुर्वेद में भी रोग के हेतुओं का वर्णन किया गया है
तज्जो रोग: कर्मयोग : 2° पुण्य और पाप भी रोग के हेतु बनते हैं। शरीर में विद्यमान अग्नि की तीक्ष्णता और मंदता रोग में निमित्त बनती है तथा अग्नि की तीव्रता और मंदता में त्रिदोष का वैषम्य हेतु बनता है । - तैर्भवेद्विषमस्तीक्ष्णो मंदाश्चाग्निः समैः सम: "
काल, अर्थ, कर्म का हीनाधिक या विषम योग रोग का तथा सम्यक् योग आरोग्य का मूल कारण है
कालार्थकर्मणां योगो हीनाधिकातिमात्रकः ।
सम्यक् योगश्च विज्ञेयो रोगारोग्यकं कारणम् ॥22
प्राकृतिक चिकित्सा वाले बीमारी का कारण विजातीय तत्वों का उभार माना है। महावीर के अनुसार रोग का मूल हेतु है भाव जगत। रोग का एक हेतु बनता है अध्यवसाय | हम अधिकांशतः चिकित्सा के क्षेत्र में बाह्य हेतुओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं पर बाह्य और अन्तरंग दोनों हेतु होते है । अन्तरंग हेतु है भाव |
रोग की प्रक्रिया
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हर कार्य की एक विधि प्रक्रिया होती है । वैसे ही रोग एकाएक नहीं आते हैं । किसी भी रोग की उत्पत्ति कुछ समय पहले सूक्ष्म स्तर पर शुरू हो जाती है पर विशेष प्रक्रिया से गुजर कर शरीर तक आने में उसे कुछ समय और लग जाता है
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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