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________________ निष्कर्षतः, शब्द की दार्शनिक प्रस्थापना में जैनाचार्यों ने भले ही बाद में प्रवेश किया हो, किन्तु इतर दार्शनिक प्रस्थापनाओं के पूर्व ही जैनागमों में उसके पौद्गालिक स्वरूप व तरंगरूपता की स्थापना द्वारा उसे एक वैज्ञानिक आधार दिया है । इतर दर्शनों में शब्द द्रव्य है या गुण यह विवाद का विषय रहा है, परन्तु जैन दृष्टि शब्द पुद्गल की पर्याय होने से द्रव्य है। 6. लग सन्दर्भ ग्रन्थ : 1. तत्त्वार्थसूत्र 5/24 2. गोम्मटसार, जीवकाण्ड गा. 594-595 धवला पुस्तक 14, 6, 97 पृ. 117 3. पञ्चास्तिकाय गा. 79 4. भासालोगंतपज्जवसिया पण्णत्ता, प्रज्ञापनासूत्र भाषापद, 15 जब भाषा वायु जल आदि माध्यमों में तरंगित होती है, तो लोकान्त में जहाँ वातावरण नहीं है, वहां यह कैसे पहुंचती है। 5. अहंकाराद्शब्दतन्मात्रम्- प्रवचनभाव्य 1/62 लब्धक्रियः प्रयत्नेन वक्तुरिच्छानुवर्तिना।। स्थानेष्वभिहतो वायुः शब्दत्वं प्रतिपद्यते॥ वाक्यपदीय 1/108 7. वही, 1/110 8. तत्राकाशस्य गुणः शब्दसंख्या, प्रशस्तपादभाष्य, पृ. 23 9. न्यायरत्न पृ. 738 10. न्यायभाष्य, पृ. 100 11. प्रकरणपञ्जिका, शालिकनाथ मिश्र, पृ. 424 आकाशगुणः शब्दः। 12. वियद्गुणत्वं शब्दस्य केचित् ऊचुर्मनीषिणः प्रत्यक्षाद्विरोधः, तद्भट्टपादैरूपेक्षितं, तत्र गुणस्य सर्वत्र साश्रयताप्रतीयमानत्वाद् इह च निराश्रयतायैव प्रतीतिदर्शनात् प्रत्यक्षविरोधः शब्दो द्रव्यं सत्त्वे सत्यनाश्रयत्वामत् कालवत्। मानमेयोदय: नारायणभट्टः त्रिवेन्द्रम् 1912 पृ. 91 13. General chemistry, Pauling, P. 12-3 14. भगवती-सूत्र 2/10 पन्नवणा सूत्र 2/36 15. Microcosmology- 159 16. Massless pudgala - Dr. G.R. Gelra, तुलसीप्रज्ञा जन.-मार्च, 75 17. Cosmology old and new. Dr. G.R. Jain, P. 17 18. Ibid 19. It might theretically be logical to prosume energy as Gasically material in the linstainion days, Put there is a clear difference Getween comman ........ 16 - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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