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________________ 4. वही - पृ. सं. 177 5. वही - पृ. सं. 306 6. प्राचीन भारत एक रूपरेखा (डी. एन. झा) - पृ. सं. 16 7. प्राचीन भारत (डॉ. हरिवंश शर्मा) मलिक एण्ड - पृ. सं. 20 कम्पनी जयपुर -1995 8. ऋग्वेद- 10/129/31 9. ऋग्वेद- 10/129/31 10. वही 11. तैतिरीयोपनिषद् ब्रह्मवल्ली षष्ठ अनुवाक 12. तैतरीय उपनिषद् 3/1 13. गीता 13/2 14. भगवत गीता 15/7 15. भारतीय दर्शन की रूपरेखा (प्रो. हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा)- पृ. सं. 97 मोतीलाल बनारसीदास 16. ब्रह्मसूत्र : शाकरभाष्य 1-1-5 17. योगसूत्र 18. Indian Philosophy -Radhakrishan vol. II. p. 428 19. शांकर भाष्य -1-1-11 2. एनलिल और निनलिल नामक आंख्यान से एनलिल के पुत्र चन्द्रमा के जन्म पर प्रकाश मिलता है। 11. सोऽकामयत || बहु स्यां प्रजायेयेति ॥ ॥ इति ब्रह्म वल्ल्यध्याये षष्ठोऽनुवाकः॥ 12. यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते॥ येन जातानि जीवन्ति" यत्प्रयन्त्यमिसविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व तद्वद्येति ॥ उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः 11. सोऽकामयत ॥ बहुं स्यां प्रजायेयेति ॥ -इति ब्रह्मवल्ल्यध्याये षष्ठोऽनुवाकः॥ कनिष्ठ शोध अध्येता प्राकृत एवं जैनागम विभाग जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं- (राज.) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2005 - 21 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524622
Book TitleTulsi Prajna 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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