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________________ 2. स्थितिहेतुत्व, 3. अवगाहहेतुत्व, 4. वर्तनाहेतुत्व, 5. स्पर्श, 6. रस, 7. गन्ध, 8. वर्ण, 9. ज्ञान, 10. दर्शन, 11. सुख, 12. वीर्य, 13. चेतनत्व, 14. अचेतनत्व, 15. मूर्तत्व तथा 16. अमूर्तत्व। इनमें से जीव और पुद्गल में 6-6 गुण तथा अन्य द्रव्यों में तीन-तीन गुण पाए जाते हैं। यथाधर्मद्रव्य- गतिहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = 3 गुण अधर्मद्रव्य - स्थितिहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = 3 गुण आकाशद्रव्य - अवगाहहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = 3 गुण काल - वर्तनाहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = 3 गुण पुद्गल - स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण , अचेतनत्व और मूर्तत्व = 6 गुण जीव - ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व = 6 गुण सारांश यह है कि आचार्य श्री तुलसी जी ने ई. 20वीं शती में जैन सिद्धान्तदीपिका का निर्माण करके तत्त्वार्थसूत्र का एक पूरक ग्रन्थ प्रस्तुत किया है, जिसमें तत्त्वार्थसूत्र के व्याख्याग्रन्थ, आगम एवं अन्य आचार्यों के मन्तव्य आधार बने हैं । जैन सिद्धान्तदीपिका में किन-किन ग्रन्थों का आधार रहा है, यह पृथक् से शोधालेख का विषय है, किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसमें षड्द्रव्यों, नवतत्त्वों एवं जैनाचार का व्यवस्थित प्रतिपादन हुआ है, साथ ही सूत्रशैली में जैनतत्त्वज्ञान को प्रस्तुत करने की परम्परा पुनर्जीवित हुई है। यह ग्रन्थ अपनी प्रयोजनता लिए हुए है। इसमें शताधिक पारिभाषिक शब्दों के लक्षण भी हैं तो सरलता एवं सूक्ष्मेक्षिका का आदि से अन्त तक निर्वाह भी है। साधारण संस्कृतज्ञ भी इसके हार्द को आसानी से हृदयंगम कर सकता है। तेरापंथ समाज में इसका पठनपाठन प्रचलित है। एकाध स्थलों पर तेरापंथ के मूल प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का नाम आने से यह कृति तेरापंथ सम्प्रदाय तक सीमित रह गई है, अन्यथा यह जैन धर्म की सभी सम्प्रदायों और जैन दर्शन के सभी जिज्ञासुओं के द्वारा अध्येतव्य है। जैन सिद्धान्त दीपिका में ज्ञान और ज्ञेय का विशद निरूपण हुआ है, जो इसकी महत्ता और उपयोगिता को स्पष्ट करता है। सन्दर्भ ग्रन्थ सूची : 1. जैन सिद्धान्त दीपिका, प्रशस्ति श्लोक 8 2. वही, सूत्र 5 एवं उसकी वृत्ति 3. वही, सूत्र 2 से 16 4. तत्त्वार्थ सूत्र 9.47 5. जैन सिद्धान्त दीपिका, प्रकाश-7, सूत्र 18 6. तत्वार्थ सूत्र 6 14 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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