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________________ 2. जैन सिद्धान्तदीपिका की यह विशेषता है कि इसमें सभी ज्ञानों के लक्षणों के लिए पृथक् रूप से सूत्र रचे गए हैं। तत्त्वार्थसूत्र में सबके व्यवस्थित क्रम से लक्षण नहीं दिए गए हैं, यथा1. मतिज्ञान - इन्द्रियमनोनिबन्धनं मतिः। अर्थात् इन्द्रिय एवं मन की सहायता से होने वाला ज्ञान मतिज्ञान है। तत्त्वार्थसूत्र में भी लगभग यही लक्षण दिया गया है, यथा- तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम्। 2. श्रुतज्ञान - द्रव्यश्रुतानुसारिपरप्रत्यायनक्षमं श्रुतम्।” ___ द्रव्यश्रुत के अनुसार दूसरों को समझाने में समर्थज्ञान श्रुतज्ञान है। द्रुव्यश्रुत का अर्थ है- शब्द, संकेत आदि। तत्त्वार्थसूत्र में इसका लक्षण-विधायक सूत्र नहीं है, किन्तु उसका मतिज्ञानपूर्वक होना कहा गया है 3. अवधिज्ञान - आत्ममात्रापेक्षं रूपिद्रव्यगोचरमवधिः। इन्द्रियादि सहायता के बिना सीधे आत्मा से होने वाला रूपी द्रव्यों का ज्ञान अवधिज्ञान है। तत्त्वार्थसूत्र में अवधिज्ञान का लक्षण तो नहीं दिया गया, किन्तु अवधिज्ञान के विषय का निरूपण करते हुए उसे स्पष्ट कर दिया गया है, यथा- रूपेष्ववधेः। 4. मनः पयार्यज्ञान - मनोद्रव्यपर्यायप्रकाशि मन:पर्याय: मनोद्रव्य एवं उसके पर्याय का प्रकाशक ज्ञान मनः पयार्य है। तत्त्वार्थसूत्र में इसका लक्षण न देकर उसके विषय का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि अवधिज्ञान के विषय के अनन्तवें भाग को मनः पर्याय ज्ञान द्वारा जाना जाता है मन भी रूपी द्रव्य है और वह समस्त रूपी द्रव्यों का अनन्तवाँ भाग है। 5. केवलज्ञान - निखिलद्रव्यपर्याय साक्षात्कारि केवलम् ।। समस्त द्रव्यों एवं उनकी समस्त पर्यायों का साक्षात्कारी ज्ञान केवलज्ञान है। तत्त्वार्थसूत्र में इसके विषय का निरूपण करते हुए कहा गया है- 'सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य। 23 ___ यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि जैन सिद्धान्तदीपिका में पाँचों ज्ञानों के लक्षणों का व्यवस्थित प्रतिपादन हुआ है, तत्त्वार्थसूत्र में उसे ज्ञान के विषयनिरूपण आदि के द्वारा भी स्पष्ट किया गया है। दोनों ग्रन्थों में अभिव्यक्त लक्षणों में मतिज्ञान, अवधिज्ञान एवं केवलज्ञान में कोई भेद नहीं हैं। मनः पयार्यज्ञान का लक्षण जैनसिद्धान्तदीपिका में विशेष 6 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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