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________________ मेग्नेट जितना ज्यादा पावरफुल होगा उतनी चुंबकीय रेखाएँ ज्यादा होती हैं। यदि यह चुंबकीय बलरेखाएँ कटती नहीं तो इलेक्ट्रीसीटी उत्पन्न नहीं होती। चुंबकीय रेखाएँ और कन्डकटींग रॉड के बीच यदि घर्षण नहीं होता तो चुंबकीय रेखाएँ कटती नहीं। जैसे करवत और लकड़ी के बीच सही तरीके से घर्षण हो तभी लकड़ी कटती है। उसी प्रकार कन्डकटींग रॉड और चुंबकीय रेखाओं के बीच योग्य घर्षण हो तभी चुंबकीय रेखाएँ कटती है। उन दोनों के बीच घर्षण अत्यन्त तेज़ी से होता है तो मेग्नेटीक लाइन्स तेजी से कटने के कारण इलेक्ट्रीसीटी ज्यादा उत्पन्न होती है। यदि वहाँ घर्षण मंद होता है तो मेग्नेटीक लाइन्स धीरेधीरे कटने से इलेक्ट्रीसीटी कम उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रीक जनरेटर में भी इसी प्रकार की प्रक्रिया से इलेक्ट्रीसीटी उत्पन्न होती है। The World Book, Encyclopedia में निम्न जानकारी देखने से यह बात ज्यादा स्पष्ट होगी। __"The stronger the magnet, the greater the number of lines of foce. If you rotate the loop of wire between the poles of the magnet, the two sides of the loop 'cut' the lines of force. This induces (generates) electricity in the loop. In the first half of the turn, one side of the loop of wire cuts up through the lines of force. The other side cuts down. This makes the electricity flow in one direction through the loop. Half way through the turn, the loop moves parallel to the lines of force. No lines of force are cut and no electricity is generated.” (Part-6, Electric-generator-Page-146, London) साइकिल के पहिये में लगे हुए डायनमो (Dyanamo) में भी इसी तरह कन्डकटींग रॉड (Coil) द्वारा प्रबल घर्षण उत्पन्न होने से चुंबकीय रेखाएँ कटती हैं और इलेक्ट्रीसीटी उत्पन्न होती है। इस तरह एक प्रकार के घर्षण से उत्पन्न होने के कारण भी इलेक्ट्रीसीटी सजीव तेउकाय स्वरूप सिद्ध होती है, क्योंकि पनवणा सूत्र के प्रथम पद में बादर तेउकाय जीव के जो प्रकार बताए गए हैं, उनमें तथा जीवाभिगमसूत्र (प्रथम प्रतिपत्ति-सूत्र-२५) में भी 'संघरिससमुट्ठिए' ऐसा निर्देश मिलता है। मतलब अग्नि के जीव के कुछ ऐसे भी प्रकार होते हैं जो संघर्ष से -घषर्ण से उत्पन्न होते हैं । नियत प्रकार के कुछ घर्षण से अग्निकाय जीवों के योग्य योनि (=उत्पत्तिस्थान) पैदा होती है और अनिकाय के जीव वहाँ उत्पन्न होते हैं। इसलिए जिस प्रकार माचिस बोक्स की दोनों साइड में एन्टीमनी सल्फाइड, फोस्फरस सल्फाइड, रेती और गौंद के मिश्रण की लेप 38 - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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