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________________ भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समझने में सहायक है। वे पूछते हैं, 'अब आप ही बताएँ -आप अल्पसंख्यक संस्था किसे मानेंगे - उसे, जिसका मैनेजमेंट भर अल्पसंख्यक है। एक अल्पसंख्यक अध्यापक सामान्य संस्था में आधा-अधूरा वेतन पाएगा और दूसरा सामान्य अध्यापक अल्पसंख्यक संस्था में पूरा-पूरा । इसी तरह एक महिला अध्यापक पुरुष विद्यालय में आधा-अधूरा वेतन पायेगी और कोई पुरुष, महिला संस्था में पूरा-पूरा, वह भी भत्तों और अन्य सुविधाओं सहित। कैसे तय होगा यह मसला? हम सभी अशासकीय अनुदान प्राप्त शिक्षा संस्थानों के शिक्षक कर्मचारी प्रतीक्षारत हैं -न्याय पाने के लिए, जल्दी ही -देर से नहीं, देर से मिला न्याय -न्याय नहीं, अन्याय होता है -अन्याय। जो संविधान और न्याय की मूल मंशा नहीं है। क्या हमारी अभिव्यक्ति की सारी क्षमताएँ और हथियार यों ही भोंथरे होते जंग खा जायेंगे? यह प्रश्न हमें बेचैन करता है।' 2. शिक्षाविदों का जमाना लद गया, उद्योगपति ही सलाहकार बनेंगे (मुकेश अम्बानी, कुमार मंगलम बिड़ला रिपोर्ट का यथार्थ) यह अप्रिय तथ्य है कि राजीव गाँधी सरकार ने जो नयी शिक्षा नीति तैयार की थी, उसके पीछे भी विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव सक्रिय थे। लेकिन उस नीति में आधारभूत मर्यादाओं का निर्वाह किया गया था और देश के शिक्षाविदों को ही यह काम सौंपा गया था, यही कारण है कि उदारीकरण के पहले तक शिक्षा का ताना-बाना जनविरोधी उस कदर नहीं हुआ था कि देश की बहुसंख्यक जनता ही उच्च शिक्षा, शोध और तकनीकी दुनिया से बाहर हो जाए। यह सच हमारी स्मृति में मौजूद है कि राजनीति ही नहीं, उद्योग और व्यापार की नीतियाँ भी विचारशील और शिक्षाविद् तय करते हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी ने विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के हुक्म की तामील की और देश की भावी शिक्षा नीति को तैयार करने के लिए दो सदस्यीय शिक्षा समिति बनायी। समिति के सदस्य मुकेश अंबानी और कुमार मंगलम बिड़ला देश के जाने-माने उद्योगपति हैं। सरकार ने यह समझदारी दिखाना तो दूर कि शिक्षा जैसे जनकल्याणकारी और सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकार की दिशा का निर्देशन शिक्षाविद या विचारक करें। यह किया कि मुनाफे पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले दो पूंजीपतियों को पूरी शिक्षा नीति बदलने के लिए मसविदा तैयार करने का निर्देश दिया। यह नैतिकता भी नहीं रही कि कम से कम कुछ बुद्धिजीवियों को भी समिति में सदस्य की हैसियत दी जाये। यह समिति अपनी स्थापनाओं में सन् 2015 तक भारतीय शिक्षा में पूरी तरह मूल्यों को अलविदा कर मुनाफाखोर वणिक बुद्धि विस्तार को प्रश्रय देती है। समिति अप्रैल 2000 में अपना प्रतिवेदन सौंप चुकी है, जिसे लोकसभा में पारित होना है। जिस तरह पहले ही जनविरोधी शिक्षा नीतियाँ सरकारों द्वारा पारित होती रही हैं, उसके मध्यनजर इसकी पूरी आशंका है कि यह प्रतिवेदन भी संसद 26 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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