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________________ मनुष्य का शरीर एवं यांत्रिक मशीन मनुष्य का शरीर भी एक यांत्रिक मशीन की तरह से है। जिस प्रकार एक यांत्रिक मशीन में अनेक कल-पुर्जे होते हैं तथा मशीन के इस्तेमाल के साथ-साथ कुछ पुर्जे पुराने पड़ जाते हैं तथा खराब हो जाते हैं। यदि इन पुों को बदल दिया जाए तो फिर से मशीन पूर्ण क्षमता के साथ काम करने लगती है और यदि कल-पुर्जे बार-बार खराब होने लगे तथा बार-बार उन्हें बदलने में अधिक मेहनत लगे तो मशीन को बदल देना ही ठीक समझते हैं। प्रकृति में भी इसी प्रकार की व्यवस्था है। मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं, तन्तु तथा अंग-प्रत्यंगों से मिलकर बना होता है। इन सबकी अपनी-अपनी एक आयु होती है। पूर्ण वयस्क मनुष्य के शरीर में लगभग सौ खरब कोशिकायें होती हैं जिनमें से अनेक मरती रहती हैं तथा नयी बनती रहती हैं। श्वेत-रक्त कोशिकायें तेरह दिन, लाल रक्त कोशिकायें 120 दिन तथा लीवर की कोशिकायें 18 माह तक जीवित रहती हैं। तन्तु की कोशिकायें तो सौ वर्ष तक जीवित रहती हैं। अन्य कोशिकाओं का तो पुनर्डत्पादन होता रहता है, लेकिन तन्तु कोशिका का पुनर्गत्पादन नहीं होता है। इसी प्रकार मनुष्य के शरीर में स्थित विभिन्न अंग-प्रत्यंगों की आयु भी अलग-अलग होती है। मनुष्य का स्वयं का औसत आयुष्य तो मात्र 70 वर्ष ही होता है जबकि उसकी आँख की औसत आयु 125 वर्ष होती है। वृद्धावस्था में नयी कोशिकाओं का उत्पादन बन्द हो जाता है तथा पुरानी कोशिकायें अपनी आयु पूर्ण करने के उपरान्त मर जाती हैं। इस प्रकार मनुष्य के अंग-प्रत्यंग शिथिल होने लगते हैं तथा अनेक प्रकार की व्याधियाँ पैदा हो जाती हैं। जब ये व्याधियाँ एक साथ इकट्ठी हो जाती हैं तो प्रकृति मनुष्य को उठा लेती है अर्थात् मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। वृद्धावस्था का मूल कारण वृद्धावस्था एवं आयुष्य के संबंध में अलग-अलग वैज्ञानिकों ने अलग-अलग सिद्धांत प्रतिपादित किये हैं। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार प्रत्येक कोशिका निरन्तर कुछ मुक्त-रेडिकल्स पैदा करती रहती हैं जो कि शरीर में इकट्ठे होते रहते हैं। लेकिन शरीर के अन्दर एन्जाइम होते हैं जो इन मुक्त रेडिकल्स को नियंत्रण में रखते हैं। जब ये रेडिकल्स नियन्त्रण के बाहर हो जाते हैं तो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं तथा अवाञ्च्छनीय प्रोटीन का निर्माण करते हैं। इनसे कोशिकायें नष्ट होने लगती हैं तथा नयी कोशिकायें बन नहीं पाती हैं और अन्ततः बुढ़ापा और फिर मृत्यु आना अवश्यंभावी है। __प्रत्येक कोशिका में गुणसूत्र होते हैं तथा ये गुणसूत्र डी.एन.ए. नामक रसायन से बने होते हैं। वैज्ञानिकों ने खोज की है कि प्रत्येक डी.एन.ए. के अन्त में टैलोमर होते हैं। तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 2004 - 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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