SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अरविन्द साहित्य और मनोनुशासनम् में आत्म तत्त्व श्रीमती उर्मिला देवी 'मनोनुशासनम्' का मूल वर्ण्य विषय मन का अनुशासन अर्थात् संयमन करना है जो सम्भवत: आत्मप्राप्ति के मार्ग का प्रथम सोपान है। शनैः-शनै: मन को नियन्त्रित और स्थित करते हुए आत्मतत्त्व का स्वरूपानावरण ही मोक्षावस्था की प्राप्ति है। मनोनुशासन में वस्तुत: मन एवं मन की विभिन्न अवस्थाओं एवं स्थितियों, मन के उत्तरोत्तर प्रगतिशील स्तरों का मनोनिरोध के विभिन्न साधनों आदि का ही वर्णन सूत्रात्मक रूप में किया गया है जिस पर आचार्य महाप्रज्ञजी (मुनि नथमल) ने बृहत् व्याख्या (हिन्दी में) लिखकर उसे जनसामान्य के लिए बोधगम्य एवं प्रयोगमूलक बना दिया है। मानसिक विकास से आरम्भ करके मनः शोधन के विभिन्न सोपानों से लक्ष्यप्राप्ति की ओर अग्रसर मनोनुशासन में आत्मतत्त्व के स्वरूप का विवेचन अत्यन्त अल्पमात्रा में किया गया है। प्रस्तुत लेख का प्रमुख विषय आचार्य तुलसी कृत मनोनुशासनम् में वर्णित आत्म स्वरूप का श्री अरविन्द सम्मत सच्चिदानन्द आत्मतत्त्व के साथ समालोचनात्मक विश्लेषण करना है, अत: आत्मतत्त्व स्वरूप पर केन्द्रित होना ही विषय सम्मत होगा। मनोनुशासनम् के अनुसार आत्मतत्त्व को चेतनवत् द्रव्य बताया गया है जिसका शुद्ध स्वरूप ज्ञान, दर्शन सहज आनन्द, सत्य एवं बल हैं।' एकमात्र आत्मतत्त्व के चैतन्यशील होने के कारण ही यह चराचर दृश्यमान जगत् चेतनायुक्त दिखाई देता है। मनोनुशासनम् का दर्शन केवल आत्मतत्त्व की सत्ता स्वीकार करता है इसके विपरीत वेदान्त दर्शन दृश्यमान रूप में आत्मा और परमात्मा दो तत्त्वों को मानते हैं यद्यपि दोनों में केवल स्वरूपगत भेद प्रतीति है, आत्यन्तिक एवं तात्त्विक स्वरूप में आत्मा और परमात्मा एक ही ब्रह्म तत्त्व की दो अवस्थायें हैं। जीवों के भीतर क्रियाशील चेतन तत्त्व ही आत्मा है। उसकी सर्वव्यापकता और चित्रशक्ति के तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 20040 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy