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________________ अपनी उष्मा-ऊर्जा विद्यमान होती ही है, उनमें रहे हुए विद्युत्-आवेश-युक्त कण निरन्तर रूप में उष्मा गति करते रहते हैं और इन उष्मा-प्रेरित प्रवेगों के कारण वे विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों को उत्सर्जित करते रहते हैं। ___ सामान्य तापमान पर उष्मा-विकिरणों की विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों की कम्पन-आवृत्ति (फ्रिक्वेंसी) इतनी कम होती हैं कि वे हमें दृष्टिगोचर नहीं हो पाती, किन्तु जब तापमान बढ़कर 500 डिग्री सेल्सियस के आस-पास पहुंचता है, पदार्थ एक मंद चमक वाली किरण उत्सर्जित कर देता है। 1000° से. तापमान पहुँचने पर पदार्थ से पीली रोशनी वाली मोमबत्ती जैसी चमक निकलती है। जब तापमान 2700 डिग्री से. के आस-पास पहुंचता है तब यह प्रकाश पीली-सफेद रोशनी वाला होता हैं जैसा बल्ब लाइट में दिखाई देता है। यदि 5800 डिग्री से. तक तापमान हो जाए, तो पदार्थ उसी प्रकार की सफेद रोशनी फेंकेगा जैसी सूर्य की रोशनी होती है। प्रश्न - बल्ब लाइट कैसे कार्य करता है? उत्तर - सामान्य बल्ब लाइट में टंगस्टन के एक पतले दोहरे गुच्छे (कुंडली) वाले सर्पिल तार में विद्युत् प्रवाह बहता हैं। जब विद्युत्-प्रवाह में रहे हुए विद्युत् आवेश (वाले कण) तार फिलामेंट में से गुजरते हैं तब वे टंगस्टन धातु के परमाणुओं के साथ समयबद्ध रूप में टकराते हैं और अपनी ऊर्जा उन परमाणुओं को हस्तान्तरित करते रहते हैं। इस प्रकार विद्युत्-प्रवाह अपनी (विद्युत्) ऊर्जा को टंगस्टन के फिलामेंट को प्रदान करता है। जिससे टंगस्टन का तापमान बढ़ता-बढ़ता 2500 डिग्री से. तक पहुंच जाता है। (यह विद्युत्-ऊर्जा का ताप-ऊर्जा में परिणमन है।) वैसे तो सभी पदार्थ सामान्यत: उष्माविकिरण फेंकते रहते हैं, पर अत्यंत गरम पदार्थ अपनी उष्मा विकिरणों के कुछ हिस्से की दृश्य रोशनी के रूप में उत्सर्जित करते हैं। 2500 डिग्री से. तापमान वाला पदार्थ (टंगस्टन फिलामेंट) लगभग 12 प्रतिशत उष्मा-ऊर्जा को दृश्य रोशनी के रूप में उत्सर्जित करता है। इसी रोशनी को हम बल्ब लाइट से बाहर निकलती देखते हैं। उष्मा का शेष भाग (बहुलांश में) बल्ब से बाहर अदृश्य इन्फ्रा रेड (अवरक्त) विकिरणों के रूप में या उष्मा-ऊर्जा के रूप में (जिसे हम उष्मा-रोशनी कह सकते हैं) निकलता है। बल्ब का काच का गोला (जो संवेष्ट करता है) फिलामेंट को आक्सीजन के सम्पर्क में आने से बचाता है, जिससे वह हवा में जलने से बच जाए। (यही प्रक्रिया स्वतः बल्ब और अग्नि के भेद को स्पष्ट करती है।) तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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