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द्वारा हो, अथवा पुरुषों एवं समाज का मशीन एवं व्यवस्था द्वारा हो अथवा इसके विपरीत हो शामिल है। यह शान्ति का अन्य नाम है। गाँधी के विचार में शान्ति एक स्थैतिक प्रत्यय न होकर गत्यात्मक, सकारात्मक अस्तिकाय है ।'
जहाँ शान्ति के अनुसंधान कार्य को मुख्यतः विभिन्न राष्ट्रों को सत्तासीन अभिजनों के क्षैतिज राजनैतिक संघर्षों में शांति एवं युद्ध की समस्याओं के रूप में देखा जाता है, वहीं गाँधी की शान्ति की व्यापक अवधारणा में गरीबी, अविकास, आन्तरिक हिंसा युद्ध सभी की समस्याएं शामिल हैं। अतः युद्ध विरोधी एवं अहिंसक अभियान गाँधी के अनुसार केवल युद्ध और हिंसा की समाप्ति का ही लक्ष्य नहीं रखते वरन् समाज के सभी संस्तरों से हिंसा व शोषण की समाप्ति भी चाहते हैं ।
यह एक सम्पूर्ण व आधारभूत परिवर्तन हेतु एक अभियान है। इस सिद्धान्त के अनुसार अहिंसा हिंसा का विलोम मात्र नहीं है वरन् निम्नतम स्तर के व्यक्ति जिसे कि गाँधी ने दरिद्रनारायण कहा, की सहायता और सामाजिक परिवर्तन हेतु वैकल्पिक शक्ति है। इस विचारधारा के अनुसार शान्ति का कार्य एक नये समाज की स्थापना है और शान्ति का सिद्धान्त संघर्ष एवं परिवर्तन का सिद्धान्त है ।
अर्थात् गाँधी की शान्ति की अवधारणा सकारात्मक थी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को वह सम्मानजनक स्तर प्राप्त था, जिससे कि समाज में सघर्ष जन्म ही न लें। गाँधी की शान्ति की अवधारणा अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में वैयक्तिक सम्बन्धों के समान कसौटी पर खरी उतरती है । शान्ति : मानव का स्वाभाविक धर्म
शान्ति और युद्ध का विषय नहीं, युद्ध व शान्ति का विषय अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सभी स्तरों पर सभी कालों में तथा लगभग सभी स्थितियों में ध्यान का केन्द्रीय विषय रहा है । शान्ति के प्रति मानवता के विश्वास और प्रेम का पता हम इस बात से लगा सकते हैं कि सभी मानवीय धर्म, सभी धर्म ग्रन्थ तथा कई एक धार्मिक रीति-रिवाज शान्ति के पथ को सुदृढ़ करते हैं तथा युद्ध की समाप्ति की वकालत करते हैं ।
शान्ति की दिशा में प्रयास
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में युद्ध को रोकने तथा शान्ति को दृढ़ बनाने के लिए अकर्मण्यता या विचारशून्यता की स्थिति रही हो, ऐसा नहीं है । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के इतिहास का रिकार्ड यह बतलाता है कि युद्ध के युगों में भी शान्ति के उपकरणों की खोज अनवरत रही है।
चूंकि युद्ध की अनुपस्थिति शान्ति की प्रथम शर्त होती है। इसी कारण विद्वानों तथा राजनीतिज्ञों का प्रमुख लक्ष्य विशेषकर युद्धोत्तर काल में इस प्राथमिक उद्देश्य की पूर्ति रहा है।
तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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