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________________ सन्दर्भ ग्रन्थ : 62. आचारांग सूत्र (आयारो), प्रथम अध्ययन। 63. दशवैकालिक सूत्र (दसवेआलियं), चतुर्थ अध्ययन। 64. प्रज्ञापना सूत्र (पण्णवणा), 1/24-26 65. आचारांग सूत्र, 1/66 "जे लोगं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अबभाइक्खइ॥" दशवैकालिक सूत्र (दसवेआलियं), 4/20- "से अगणिं वा इंगालं वा मुम्मुरं वा अच्चिं वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उक्कं वा......." प्रज्ञापना सूत्र (पण्णवणा), 1/24-26 "से किं तं तेउक्काइया? तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सुहुमतेउक्काइया य बादरतेउक्काइया य॥ से किं तं सुहुमतेउक्काइया ? सुहुमतेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहम तेउक्काइया॥ से किं तं बादरतेउक्काइया ? बादरतेउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा - इंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी णिग्घाए संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिणिस्सिए। जे यावण्णे तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पण्णत्ता, तं जहां पज्जतगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एएसिणं वण्णादेसेण गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाई जोणिप्पमुहसयसहस्साइअं। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति - जत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। से त्त बादरतेउक्काइया। से तं तेउक्काइया॥" 68. दसवेआलियं, 4/20 का टिप्पण, पृष्ठ 152, 153 69. (क) जि.चू. (जिनदास चूर्णि) पृ. 155-56 अगणी नाम जो अयपिंडाणुगयो फरिसगेज्झो सो आयपिंडो भण्णइ। (ख) हा.टी. (हारिभद्रीय टीका) पृ. 89 अयस्पिण्डानुगतोऽग्निः 70. (क) अ. चू. (अगस्त्य चूर्णि) पृ. 89 : इंगलां वा खदिरादीण णिद्दड्डाण धूमविरहितो इंगालो। (ख) जि.चू. पृ. 156 : इंगालो नाम जालारहिओ। (ग) हा.टी.पृ. 154 ज्वालारहितोऽङ्गारः। 71. (क) अ.चू. पृ. 89 : करिसगादीण किंचि सिट्ठो अग्गी मुम्मुरो। (ख) जि. चू. पृ. 156: मुम्मुरो नाम जो छाराणुगओ अग्गी सो मुम्मुरो। ___ (ग) हा.टी. पृ. 154 : विरलाग्निकणं भस्म मुर्मुरः। 72. (क) अ.चू. पृ. 89 : दीवसिहासिहरादि अच्ची। (ख) जि. चू. पृ. 156 : अच्ची नाम आगासाणुगआ परिच्छण्णा अग्गिसिहा। (ग) हा.टी. प. 154 : मूलाग्निविच्छन्ना ज्वाला अर्चिः। 52 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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