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________________ अपना असली रूप प्राप्त कर लेती है यानी जैसी थी वैसी ही हो जाती है। अग्नि में इंधन जलता है तब मूल ईंधन समाप्त हो जाता है। रासायनिक प्रक्रिया घटित होती है, इंधन का रूपान्तरण राख, गैस आदि रूप में होकर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है, अग्नि की प्रक्रिया के बाद इंधन पुनः अपना रूप प्राप्त नहीं करता । यह स्पष्ट है कि अग्नि रासायनिक क्रिया है, धातु की उक्त क्रिया केवल भौतिक क्रिया है। 105 अब हम इलेक्ट्रीक बल्ब में प्रकाश करने वाले टंगस्टन के तार की प्रक्रिया को स्पष्टतः समझ सकते हैं। जब तार में विद्युत् प्रवाह बहता है, तो विद्युत् ऊर्जा का रूपान्तरण उष्मा-ऊर्जा में होने से टंगस्टन धातु ऊंचे तापमान पर प्रकाशित होने लग जाती है। इस सारी प्रक्रिया में कहीं पर भी ज्वलन-क्रिया या अग्नि का परिणमन नहीं होता। अग्नि की प्रक्रिया में अनिवार्यतः आवश्यक ऑक्सीजन का बल्ब में नितान्त अभाव है। इसलिए उपयुक्त तापमान होने पर भी तथा प्रकाश एवं उष्मा का उत्सर्जन होने पर भी अग्नि की प्रक्रिया घटित नहीं होती, न ही इंधन जलने के पश्चात् निष्पन्न होने वाले राख, गैस की निष्पत्ति होती है। (इसकी विस्तृत चर्चा आगे सेक्शन-9 में की गई है।) अग्नि से सम्बद्ध अन्य कुछ ज्ञातव्य बातें 1. कुछ रासायनिक क्रियाएं ऐसी होती हैं, जिनमें उष्मा बढ़ती है पर अग्नि नहीं होती। जैसे- पानी में चूना डालने से एक्सोथर्मिक रिएक्शन होता है। 2. हवा के ऑक्सीजन के साथ लोहा सामान्य तापमान पर ही आर्द्रता प्राप्त होने पर फेरस आक्साइड ('जंग' या rust के रूप में) पैदा करता है । पर इसमें तापमान सीमा के भीतर ही रहता है । इस प्रक्रिया में उष्मा या प्रकाश निष्पन्न नहीं होते। यह अग्नि की क्रिया नहीं है। 3. फोस्फरस सामान्य तापमान पर ऑक्सीजन के साथ मिलकर ऑक्साइड बनाता है और प्रकाश भी करता है। इस प्रकाश को "फोस्फेरन्स" कहा जाता है। यहां तापमान नहीं बढ़ता है । 7. आकाशीय विद्युत् (Lightning) इलेक्ट्रीसीटी का भिन्न-भिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न प्रकार से रूपान्तरण होता है। स्थित विद्युत् (static), चल-विद्युत् (current) और विद्युत् का डीस्चार्ज (निरावेशीकरण) इन तीन रूपों में विद्युत् (इलेक्ट्रीसीटी) का परिणमन हो सकता है। जैसे हम देख चुके हैं कि विद्युत् स्वयं अपने आप में एक पौद्गलिक पर्याय के रूप में है। उसी पौद्गलिक पर्याय का कौन-सा रूपान्तरण "सचित्त तेउकाय" के रूप में परिणत होगा और कौन-सा केवल पौद्गलिक या अचित्त परिणमन ही रहेगा – इसे भली-भांति समझना होगा। आकाशीय विद्युत् जो आकाश में बिजली के रूप में चमकती है तथा विद्युत् के अन्य परिणमन कहां तक एकरूप है, कहां तक भिन्न -- इसका चिन्तन हमें करना होगा । हम देख चुके हैं तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only 43 www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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