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________________ उच्च शिक्षा का बदलता परिदृश्य -डॉ. बच्छराज दूगड़ सामाजिक एवं आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका को स्वीकृत किया जा चुका है। यह भी पूर्ण रूप से स्थापित हो चुका है कि राष्ट्रीय विकास के सभी क्षेत्रों में आवश्यक योग्यता के विकास में उच्चशिक्षा का बड़ा योगदान है। उच्च शिक्षा ही व्यवसाय, प्रशासन, व्यापार, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सेवाओं के लिए मानव संसाधन तैयार करती है। इस दृष्टि से वर्तमान में विश्वविद्यालय केवल ज्ञानवर्द्धन एवं शोध के केन्द्र ही नहीं अपितु समाज में शक्ति एवं प्रभावपूर्ण पदों पर नियुक्ति के स्त्रोत भी हैं। व्यावसायिक एवं प्राविधिक क्षेत्रों में निरन्तर एवं पर्याप्त वृद्धि होने के फलस्वरूप विश्वविद्यालयों का समाजशास्त्रीय महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में विश्वविद्यालयों का यह दायित्व है कि वे अपने प्रभाव क्षेत्रों का अध्ययन करें तथा भौतिक विकास की ओर अग्रसर विश्व में अपने प्रभाव की दिशा भी बदलें। यथार्थ यह भी है कि उच्चशिक्षा के प्रसार के कारण ये विश्वविद्यालय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास में निर्णायक कारक भी बन रहे हैं । यद्यपि प्रारम्भ में विश्वविद्यालयों का संबंध संस्कृति की प्रगति से था, धन की वृद्धि से नहीं लेकिन कालान्तर में इनके द्वारा ज्ञान के प्रसार विशेषतः वैज्ञानिक शोधों का यह फल हुआ कि वे आधुनिक विश्व को दिशा देने वाले साधनों में प्रमुख साधन सिद्ध हुए तथा इन्हीं के कारण प्रौद्योगिक विकास की स्थितियाँ बन सकी एवं उच्चस्तरीय कुशल एवं विज्ञ कार्यकर्ताओं की आवश्यकता बढ़ी। उच्च शिक्षा की उत्पादकता उस शिक्षा को अर्थहीन ही कहा जाएगा जो केवल व्यक्ति में बौद्धिक विकास एवं भौतिक संसाधनों में योगदान के साथ उसकी सृजनात्मक शक्तियों को उजागर न करे। समाज को ऐसे उत्पादक कार्यकर्ताओं की अपेक्षा है जो अपने कार्य - - तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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