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व्यक्ति के शरीर की लम्बाई-मोटाई व्यक्तित्व का आकर्षक या अनाकर्षक होना यह सब शरीर-विज्ञान के अनुसार विविध ग्रंथियों-विशेष रूप से थायराइड ग्रंथि के स्रावों पर निर्भर करता है। इस ग्रंथि से थायरॉक्सिन आदि हार्मोन्स निकलते हैं जिसके कारण व्यक्ति के शरीर में उपर्युक्त परिवर्तन एवं विकास के घटक तत्त्व निर्मित होते हैं। यह सब भी बाह्य व्यक्तित्व से संबद्ध है। फलतः शरीर नामकर्म ही इनके लिए उत्तरदायी है। जब शुभ नाम कर्म का उदय होता है तो व्यक्ति का व्यक्तित्व आकर्षक होता है।
प्रश्न उठता है कि मानव जाति में लिंग का निर्धारण किस आधार पर होता है। शरीर विज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक शरीर की कोशिका में 46 क्रोमोजोम पाये जाते हैं। गर्भाधारण के समय मानवीय प्राणी माता के अण्डाणु (Ovim) से 23 गुणूसत्र तथा पिता के शुक्राणु से 23 गुणसूत्र प्राप्त करता है। पुरुष में पाये जाने वाले क्रोमोजोम को 'Y' क्रोमोजोम कहते हैं और नारी में पाये जाने वाले को 'X' क्रोमोजोम कहते हैं। इन X तथा Y क्रोमोजोम को लिंग क्रोमोजोम कहते हैं। इनके संयोग से लिंग का निर्माण होता है। इस निर्माण के पश्चात् स्त्री में स्त्रीत्व और पुरुष में पुरुषत्व विकास के लिए गोनाड्स ग्रंथि मानी जाती है।
___ कर्म शास्त्र की भाषा में इन सबके लिए उत्तरदायी है वेद । आज शरीर विज्ञान ने इतना विकास किया कि लिंग परिवर्तन के द्वारा एक लड़के को लड़की के रूप में और एक लड़की को लड़के के रूप में रूपान्तरित किया जा सकता है। यह सब ग्रंथियों के स्रावों पर ही निर्भर करता है।
कुछ व्यक्तियों के शरीर का विकास असामान्य होता है अर्थात् किसी के ऊपर का भाग सुन्दर तो किसी के नीचे का भाग। किसी के पैर अत्यधिक पतले होते हैं तो किसी का पेट बहुत बड़ा हो जाता है। कुछ व्यक्तियों के शरीर के अनुपात में हाथ-पैर अधिक मोटे हो जाते हैं, सिर बड़ा हो जाता है। यह सारी असामान्यता किस आधार पर घटित होती है? कर्मशास्त्र के अनुसार यह सब शुभ-अशुभ नाम कर्म के उदय से होता है। जिसके शुभ नाम कर्म का उदय होता है, उसके शारीरिक अवयव सुन्दर होते हैं। जिसके अशुभ नाम कर्म का उदय होता है उसके शारीरिक अंग-उपांग सुन्दर नहीं होते हैं।
शरीर विज्ञान की दृष्टि से थायराइड ग्रंथि के असंतुलित स्राव से ये सारी क्रियाएं घटित होने लगती हैं। जैन कर्म सिद्धान्त के अनुसार संहनन अर्थात् आकृति रचना के मुख्यत: 6 प्रकार हो सकते हैं - 1. वज्रऋषभनाराच, 2. ऋषभनाराच, 3. नाराच, 4. अर्धनाराच, 5. कीलिका, 6. सेवार्त।
__ 1. वज्रऋषभनाराच-कुछ व्यक्तियों की अस्थि संरचना इस प्रकार से होती है कि उसमें कई अस्थियों को भेद कर उसके आर-पार एक बोल्ट कसा हुआ होता है। इसे वज्रऋषभनाराच कहते हैं। यह अत्यधिक शक्तिशाली और मजबूत अस्थि संरचना होती है।
2. ऋषभनाराच-इस अस्थि संरचना में दो परस्पर गुंथी हुई अस्थियों के ऊपर एक और तीसरी अस्थि लिपटी हुई रहती है। उसे ऋषभनाराच कहते हैं।
3. नाराच-कुछ व्यक्तियों की हड्डियां दोनों ओर से आपस में जुड़ी हुई होती हैं। ऐसी अस्थि संरचना को नाराच कहते हैं। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर --दिसम्बर, 2002 -
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