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विहारं (विहारं)
विहार शब्द के अनेक अर्थ हैं-मनोरंजन, खेल, आमोद-प्रमोद, घूमना आदि। प्रस्तुत प्रसंग में विहार का प्रयोग एक अन्य अर्थ जीवन की समग्रता, मनुष्य जीवन के लिए किया गया है
असासयं दठु इमं विहारं, बहुअंतरायं न य दीहमाउं ।'
तम्हा गिहंसि न रइं लहामो, आमंतयामो चरिस्सामु मोणं ॥22
हमने देखा है कि यह मनुष्य जीवन अनित्य है, उसमें भी विघ्र बहुत हैं और आयु थोड़ी है। इसलिए घर में हमें कोई आनन्द नहीं है। हम मुनिचर्या को स्वीकार करने के लिए आपकी अनुमति चाहते हैं। तमं तमेणं (तमस्तमसि)
साहित्य जगत् में अंधकार निराशा, अवसाद या विपत्ति के रूप में प्रचलित है। उत्तराध्ययन में इस प्रचलित अर्थ से दूर न होते हुए भी, उसमें एक अन्य सूक्ष्म अर्थ को समाविष्ट कर विशिष्ट अर्थव्यंजना की है
वेया अहीया न भवंति ताणं भुत्ता दिया निति तमं तमेणं।
वेद पढ़ने पर भी वे त्राण नहीं होते। ब्राह्मणों को भोजन कराने पर वे अन्धकारमय नरक में ले जाते हैं।
यहां 'तम' का अर्थ नरक और 'तमेणं' का अर्थ अज्ञान से किया है। 'तमंतमेणं' को एक शब्द तथा सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति मानी जाए, तो इसका वैकल्पिक अर्थअन्धकार से भी जो अति सघन अन्धकारमय हैं वैसे रौरव आदि नरक होगा। 24
यहां 'तमं तमेणं' शब्द अन्धकारमय नरक का प्रतीक है। साहाहि रुक्खो (शाखाभिवृक्षो)
पहीणपुत्तस्स हु णत्थि वासो वासिट्ठि भिक्खायरियाइ कालो।
साहाहि रुक्खो लहए समाहिं छिन्नाहि साहाहि तमेव खाणुं ॥5
पुत्रों के चले जाने के बाद मैं घर में नहीं रह सकता। हे वाशिष्ठि! अब मेरे भिक्षाचार्य का काल आ चुका है। वृक्ष शाखाओं से समाधि को प्राप्त होता है। उनके कट जाने पर लोग उसे लूंठ कहते हैं।
प्रस्तुत प्रसंग में वृक्ष पुरोहित का प्रतीक है और शाखा शब्द पुरोहित पुत्रों का। वृक्ष शाखा से समाधि को प्राप्त होता है अर्थात् मेरे पुत्र संयम स्वीकार कर रहे हैं। शाखाएं मेरे से अलग हो रही हैं। कटी हुई शाखाओं वाला वृक्ष ढूंठ कहलाता है। प्रतीक-संकेत है कि मैं ढूंठ की तरह असहाय होकर नहीं जी सकता।
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 ।
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