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________________ चेइए वच्छे (चैत्यो वृक्षः ) कवि - मानस स्वभावतः प्रकृति का सहचर होता है। प्रकृति से उसका साहचर्य काव्यभाषा के लिए अनायास ही वरदान बन जाता है। प्रतीक के संदर्भ में भी प्रकृति के विभिन्न उपकरणों का संयोजन पर्याप्त सहायक है । 'नमिपव्वज्जा' अध्ययन में 'चेइए वच्छे' नमि का प्रतीक बनकर उभरा है मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे । पत्तफलोवेए बहूणं बहुगुणे सया || " मिथिला में एक चैत्यवृक्ष था - शीतल छाया वाला, मनोरम, पत्र, पुष्प और फलों से लदा हुआ और बहुत पक्षियों के लिए सदा उपकारी । चैत्यवृक्ष को नाम राजर्षि का प्रतीक बनाकर कवि का कहना है कि राजर्षि के शीतल, सुखद आश्रय में सभी मिथिलावासी सुख - पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हर दृष्टि नगरवासियों के लिए राजर्षि आधार बना हुआ था । गाथा में प्रयुक्त 'बहूणं' शब्द भी चूर्णिकार के अनुसार द्विपद, चतुष्पद तथा पक्षियों का द्योतक है 118 कुमुयं (कुमुदं ) प्रकृति मनुष्य से भी अधिक संवेदनशील है । कवि हृदय के अमूर्त्त उद्गारों की अभिव्यंजना के लिए विभिन्न प्रकृति-प्रतीक माध्यम बनते हैं। शरद् ऋतु का कुमुद निर्लेपता का प्रतीक बनकर उपस्थित हुआ है वोछिंद सिणेहमप्पणो कुमुयं सारइयं व पाणियं । से सव्वसिणेहवज्जिए समयं गोयम । मा पमायए ॥ 19 जिस प्रकार शरद् ऋतु का कुमुद जल में लिप्त नहीं होता उसी प्रकार तू अपने स्नेह का विच्छेद कर निर्लिस बन । हे गौतम! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर। कुमुद को निर्लेपता का प्रतीक बना भगवान् ने गौतम को स्नेहमुक्त होने का उपदेश दिया । कुमुद पहले जलमग्न होता है, बाद में जल के ऊपर आ जाता है । चिर संसृष्ट, चिरपरिचित होने के कारण गौतम का महावीर से स्नेह - बंधन है। महावीर नहीं चाहते कि कोई उनके स्नेह - बंधन में बंधे । इसलिए महावीर ने स्नेह के अपनयन के लिए कुमुद को प्रतीक बना गौतम को प्रेरणा दी। Jain Education International बहुस्सुतो के प्रतीक बहुश्रुत कौन ? ' बहुस्सुयं जस्स सो बहुस्सुतो 20 - जो श्रुत का धारक है वह बहुश्रुत है । 'बहुस्सुयपुज्जा' में बहुश्रुत के प्रसंग में रूढ़ उपमानों के रूप में प्रतीकों का प्रभूत प्रयोग हुआ है। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 For Private & Personal Use Only 45 www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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