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________________ भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का सामाजिक सरोकार -प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन बौद्धधर्म के सिद्धान्त और उनको प्रतिपादित करने वाले बौद्ध ग्रन्थों का दृष्टान्त विवेचन जितना आकर्षक है, उससे कई गुना प्रभावित करने वाला है भगवान् बुद्ध का व्यक्तित्व। उज्ज्वल और पवित्र चरित्र का धारक भगवान् बुद्ध का आत्मसंयम प्रेरणादायी बना है जनमानस को सदाचार के प्रति समर्पित बनाने में। बुद्ध का हृदय प्राणीमात्र को सुखी करने के लिए करुणा से भरा था, अतः उन्होंने अपना समस्त जीवन संसार के दुःख को दूर करने के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए बुद्ध की शिक्षाएं समाज के हर वर्ग के उत्थान से जुड़ी हुई हैं। उनका धर्म हर व्यक्ति के लिए था। उनका अपना पट्टशिष्य उपालि नाम का एक नाई था, अतः बुद्ध की शिक्षाएं सिद्धान्त और व्यवहार में अन्तर नहीं करती हैं। सदाचार, अहिंसा, करुणा, मैत्री, सेवा आदि बुद्ध की शिक्षाओं के सुमधुर फल हैं। भगवान बुद्ध ने अबैर से बैर की शान्ति का उपदेश देकर, प्राणी-हिंसा से सदैव दूर रहने का मार्ग प्रशस्त कर, प्राणियों में मैत्री भावना का संचार करने की प्रेरणा देकर विश्व का परम कल्याण किया है। गृहस्थों के लिए भी भगवान् बुद्ध ने अनेक प्रसंगों में विविध शिक्षाएं प्रदान की हैं। इनमें से कतिपय बुद्ध की शिक्षाओं के सामाजिक सम्बन्धों पर दृष्टिपात करना उपयोगी होगा। भगवान् बुद्ध ने भावानाशून्य क्रियाकाण्डी पूजा-पाठ का निषेध किया था। उन्होंने अपनी पूजा तक को सार्थक न कहकर धर्म-आचरण की ओर सबको प्रेरित किया।' उन्होंने यह भी कहा था कि मनुष्य भय के मारे पर्वत, वन, उद्यान, वृक्ष, चैत्य आदि को देवता मानकर उनकी शरण में जाते हैं, किन्तु ये शरण मंगलदायक नहीं, ये शरण उत्तम नहीं, क्योंकि इन शरणों में जाकर सब दुःखों से छुटकारा नहीं मिलता। जो बुद्ध धर्म और संघ की शरण जाता है और चार आर्यसत्यों की भावना करता है, वही सब दुःखों से मुक्त होता है। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 D - 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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