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अनुभूति में विवेचन नहीं होता, चिन्तन में गति नहीं होती। अनुभूति का परिपाक विवेक में होता है
और विवेक का परिपाक होता है मनन में। मनन क्या है ? ज्ञान और आचरण की रेरवाओं का समीकरण ही तो मनन है।
- आचार्य महाप्रज्ञ
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