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________________ व्यवहार में अनेकांन्त दृष्टि का विकास - साध्वी वर्धमानश्री जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में यदि मानव स्वस्थ और समस्यामुक्त जीवन जीना चाहता है तो उसके लिए सर्वोत्तम उपाय है - अनेकान्त दृष्टि का निर्माण । अनेकान्त हमें हर विचार में छिपी सत्यता का दर्शन कराता है। अनेकान्त का अभिमत है- प्रत्येक वस्तु के अनेक छोर हैं, अनेक धर्म हैं। वस्तु में अनन्त-अनन्त विरोधी धर्म एक साथ रहते हैं। व्यवहार में भी प्रत्यक्षतः देखा जाता है। एक फोटोग्राफर ने सोचा मैं एक ऐसे व्यक्ति का फोटो लूं जिसके चेहरे से साक्षात् देवत्व टपक रहा हो। उसे एक ऐसा व्यक्ति मिल ही गया। काफी समय बाद उसके मन में आया - मैं एक ऐसे व्यक्ति का फोटो लूं जिसके चेहरे से साक्षात् हैवानियत टपक रही हो। अन्वेषण करते-करते वह व्यक्ति भी मिल गया जिसके चेहरे से अत्यन्त क्रूरता टपक रही थी। बातों ही बातों में ज्ञात हुआ कि जिस चेहरे से देवत्व टपक रहा था वह भी उसी व्यक्ति का फोटो था। ___व्यक्ति एक, स्थितियाँ अनेक। पर्यायें बदलती रहती हैं। प्रत्येक द्रव्य में एक दूसरे के विरोधी युगल अस्तित्व में रहते हैं। उनमें केवल एक विरोधी युगल ही नहीं किन्तु अनन्त विरोधी युगल अस्तित्व में रहते हैं। एक साथ एक का दूसरे विरोधी पर्याय के बिना अस्तित्व टिक नहीं सकता। यह सार्वभौम नियम है। इस जगत में ऐसा कोई भी तत्त्व नहीं है जिसका पक्ष हो और प्रतिपक्ष न हो तथा पक्ष और प्रतिपक्ष में सह-अस्तित्व न हो । आज वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य को सिद्ध कर दिया है। परमाणु में जितनी संख्या एलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रोन आदि कणों की होती हैं उतनी ही संख्या प्रतिकणों की भी होती हैं। एलेक्ट्रॉन का प्रतिकण प्रतिएलेक्ट्रोन, प्रोटोन का प्रतिप्रोटोन और न्यूट्रॉन का प्रतिन्यूट्रॉन होता है । परमाणु के नाभिक का जब विखण्डन होता है तब ये प्रतिकण एक सैकेण्ड के करोड़वें भाग से भी कम समय के लिए अस्तित्व में आते हैं। उस समय कण और प्रतिकण में टकराव होता है । फलस्वरूप गामा किरणें या प्रोटोन्स पैदा होते हैं। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 69 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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