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विश्व बंधुत्व के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को भी हम नजर अंदाज न करें
इसमें सबसे पहली कठिनाई है - सब मनुष्यों का मस्तिष्क समान नहीं होता, चिन्तन समान नहीं होता, भावना समान नहीं होती, समझ समान नहीं होती, इन्द्रिय-निग्रह समान नहीं होता, मानसिक नियंत्रण समान नहीं होता, विवेक समान नहीं होता। इस असमानता का लाभ उठाकर हिंसा, आतंक, अपराध, दूसरे के सत्व का अपहरण करने की मनोवृत्ति, आक्रमण आदि निषेधात्मक तत्व अपना पंजा फैला देते हैं।
क्या इन बाधाओं को चीर कर विश्व बंधुत्व की भावना को व्यापक नहीं बनाया जा सकता? यदि मनुष्य को तनावमुक्त, अभय, शांति और आनन्द का जीवन जीना है तो अवश्य ही इन बाधाओं को पार करने का सेतु निर्मित करना होगा और वह सेतु बनेगा मस्तिष्कीय प्रशिक्षण अथवा हृदय परिवर्तन । विश्वबंधुत्व के आधार सूत्र :
भारत की मानविकी ने विश्व को व्यापक बनाने के जो सूत्र दिये हैं, उनका प्रशिक्षण बहुत महत्वपूर्ण है । कुछ सूत्रों का उल्लेख करना अप्रासंगिक नहीं होगा। विश्व बंधुत्व के आधारभूत
सूत्र हैं :
(1) आत्मौपम्य की भावना का विकास। (2) मनुष्य जाति की एकता में विश्वास। (3) धर्म की मौलिक एकता में विश्वास। (4) राष्ट्रीय अथवा विभक्त भूखण्ड के नीचे रहे हुए अखण्ड जगत् की अनुभूति । (5) मैत्री और करुणा का विकास। (6) व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा। (7) शस्त्र के प्रयोग की सीमा। (8) अनावश्यक हिंसा की वर्जना।
(9) संयम का विकास।" मानवीय संबंध सुधरे :
इन सूत्रों का प्रचार-प्रसार हो, ये जन-जन तक पहुंचे, इतना ही पर्याप्त नहीं है। अपेक्षा है, इन मानविकी सिद्धान्तों के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। मस्तिष्कीय-परिवर्तन प्रशिक्षण से सम्भव है। इसकी पुष्टि विज्ञान के द्वारा हो रही है। अनेक वैज्ञानिक पशुओं को प्रभावित कर उनका मस्तिष्कीय परिवर्तन कर रहे हैं। क्या मनुष्य के मस्तिष्क को प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता? निश्चित ही किया जा सकता है, पर इस और अभी ध्यान कम दिया जा रहा है।
विश्व बंधुत्व के सिद्धान्त को व्यापक बनाने का पहला प्रयोग होना चाहिये मानवीय संबंधों में सुधार । इस शिक्षा प्रधान वैज्ञानिक और लोकतंत्रीय प्रणाली के युग में प्रत्येक मनुष्य ने अपने अस्तित्व को समझा है और हीन भावना से ऊपर उठकर समानता का शंखवाद किया है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 115
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