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संस्थाओं के प्रतिनिधि नहीं थे। अध्यात्मवादी या शांति की दिशा में प्रयत्न करने वाले शायद मिलना नहीं जानते। वे किसी न किसी बहाने पृथक होकर चलते हैं। हिंसा में अपूर्व मेल होता है। उसकी शक्ति तत्काल एकत्रित हो जाती है। हमें अहिंसा की शक्ति को संचित करना है। नि:शस्त्रीकरण की दिशा में कोई राष्ट्र पहल करने को तैयार नहीं है। पूर्ण निःशस्त्रीकरण सर्वथा वांछनीय होते हुए भी संभव है तंत्र के लिए व्यावहारिक न हो किन्तु अणु अस्त्र जैसे मानव जाति के प्रलंयकारी अस्त्रों के निर्माण तथा संग्रह का उत्सर्ग करना अनिवार्य है। इस दिशा में जो पहल करेगा, वह मानवता का सबसे बड़ा पुजारी होगा।
युद्ध की कल्पना करना बहुत धृष्टता की बात है। किन्तु युद्धकाल में भी युद्धस्थली से अतिरिक्त क्षेत्र को प्रभावित करने वाले अस्त्रों के निर्माण और प्रयोग पर एक अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रण हो और यदि वह मानवता की अखण्डता के आधार पर हो तो वह विकास का एक बहुत बड़ा चरण होगा। तीन विचार श्रेणियां:
___ वर्तमान युद्ध का अतीत यह है और वर्तमान सामने है। युद्ध का समय सबके लिए बड़ा विकट होता है। उसके समर्थन और असमर्थन का प्रश्न ज्वलन्त हो जाता है। इस समय सिद्धान्तवादी लोग लगभग तीन विचार श्रेणियों में बंटे हुए हैं : -
(1) आक्रमण में विश्वास रखने वाले हिंसावादी। (2) प्रत्याक्रमण में विश्वास रखने वाले मध्यमार्गी ।
(3) अनाक्रमण में विश्वास रखने वाले अहिंसावादी। - अन्तर्राष्ट्रीय हिंसा में विश्वास रखने वाले हिंसावादी लोग जैसे अपने देश के प्रति कोई विशेष अनुराग नहीं रखते, वैसे ही प्राणी मात्र के प्रति अनुराग नहीं रखते, किन्तु दोनों एक श्रेणी के नहीं होते। हिंसावादी के सामने शत्रु और मित्र का विभाग होता है। अहिंसावादी के सामने वह विभाग नहीं होता। वह किसी को शत्रु नहीं मानता।14 कम हों विभाजक रेखाएं :
विभाजन उपयोगिता के लिए होता है पर उसकी जितनी रेखाएं खींची जाती हैं, उतनी ही दूरी बढ़ जाती हैं। विश्व शांति के लिए यह बहुत अपेक्षित है कि इन विभाजन रेखाओं को जितना संभव हो सके, उतना कम करने का प्रयत्न किया जाए।
यातायात के साधनों की अविकसित दशा में अनेक राष्ट्र, अनेक जातियां और शासन प्रणालियां अपनी-अपनी परिधि में चलती थी। आज के यातायात के विकसित साधनों ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। उसकी दूरी सिमट गयी है। परिस्थितियां समाप्त हो गई हैं। इस नई स्थिति में एक राष्ट्र, एक जाति और एक शासन प्रणाली के सिद्धान्त का बहुत महत्त्व बढ़ गया है। इसका भविष्य बहुत उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। इस कल्पना को मूर्त रूप देने में कम उलझनें नहीं हैं, किन्तु विभाजन की रेखाओं को मिटाए बिना उलझनों का अंत नहीं आ सकता। तब उन उन उलझनों को सुलझाने के सिवा शांति के पक्ष में और चारा ही क्या है ?
तुलसी प्रज्ञा अंक 115
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