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बीस परिवारों के सदस्यों पर किये गये अध्ययन के अनुसार अस्सी प्रतिशत परिवार पारिवारिक समस्याओं का निदान अहिंसात्मक तरीकों से करने के पक्षधर थे। बीस प्रतिशत परिवारों का यह मानना था कि आवश्यकतानुसार न्यायालय की शरण अथवा अन्य हिंसात्मक कार्यवाही का उपयोग भी किया जा सकता है। पारिवारिक समस्याओं के निदान हेतु उनके प्रमुख अहिंसात्मक तरीके विचार-विमर्श, मध्यस्थता, पारिवारिक गोष्ठी, सौहार्द, सामंजस्य एवं सहिष्णुता का विकास आदि थे। जबकि पारिवारिक शांति बनी रहे इसके लिए वे कार्यों का उचित विभाजन, सभी सदस्यों की भावना का आदर, परस्पर सहयोग एवं सामंजस्य की प्रवृत्ति; पारिवारिक गोष्टी तथा ध्यान, योग एवं अनुप्रेक्षा का अभ्यास आदि आवश्यक मानते थे।
अध्ययन के अनुसार प्रयोग समूह के सदस्यों की दृष्टि में विचार-विमर्श पारिवारिक शांति का प्रथम उपाय है जबकि मार-पीट एवं तानाशाही अंतिम ।
अध्ययन के लिए प्रयुक्त बीस परिवारों के सदस्यों में से पन्द्रह सदस्य अनेकान्त एवं सापेक्षता, सह-अस्तित्व आदि सिद्धान्तों से परिचित थे तथा वे पारिवारिक शांति के लिए समान जीवन स्तर अथवा समान विचार धारा को आवश्यक नहीं मानते जबकि जो पांच सदस्य अनेकान्त से परिचित नहीं थे, उनमें से चार का यह मानना था कि पारिवारिक शांति के लिए समान विचारधारा होना आवश्यक है। यद्यपि इनमें से दो परिवार समान जीवन स्तर में विश्वास नहीं करते थे जबकि अन्य तीन का मानना था कि पारिवारिक शांति के लिए जीवन स्तर का समान होना भी आवश्यक है।
___अध्ययन का यह निष्कर्ष भी है कि पारिवारिक शांति के लिए ये सभी परिवार अनेकांत को प्रायः प्रासंगिक मानते हैं। उनका यह मानना था कि अनेकान्त एक व्यावहारिक सिद्धान्त है जिसका प्रयोग वे पारिवारिक शांति के लिए जाने अनजाने करते ही हैं। जो अनेकान्त से अपरिचित थे उन्होंने इस पर अपनी कोई राय व्यक्त नहीं की। लेकिन जब उन्हें अनेकान्त एवं उसके उपयोग से परिचित कराया गया तो उनका यह मानना था कि पारिवारिक शांति के लिए कुछ सीमा तक अनेकांत का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन जहां आर्थिक समस्याओं के कारण अशांति है उसके लिए अनेकान्त कारगर उपाय नहीं हो सकता। पारिवारिक अशांति का उपचार : अनेकांत आधारित प्रयोग
पारिवारिक जीवन के विरोधी प्रश्नों का समाधान अनेकान्त द्वारा संभव है। अनेकांत अनाग्रही दृष्टि है जो सम्पूर्ण सत्य का ज्ञान दे सकती है। एकान्त दृष्टि सत्य की बाधक एवं अशांति का मूल है। दूसरों के सत्य को झुठलाकर सम्पूर्ण सत्य को नहीं प्राप्त किया जा सकता, क्योंकि सत्य विवाद में नहीं, समन्वय में प्रकट होता है। केवल स्वयं के दृष्टिकोण के प्रति ही आग्रह रखकर न तो पारिवारिक कलह का शमन हो सकता है और न मैत्री का विकास ही। स्वयं के भावनात्मक संवेगों पर नियंत्रण रखकर दूसरे के विचारों के प्रति
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 20016
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