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अपरिग्रह की चेतना को जगाना अहिंसा से भी ज्यादा कठिन है। हिंसा का सबसे बड़ा कारण परिग्रह अथवा संग्रह है। क्रोध, अहंकार और माया इन्हें छोड़ना कठिन है। लोभ को छोड़ना कठिनतर है। प्रयोग के बिना अलोभ की चेतना को जगाया नहीं जा सकता । प्रयोग के सूत्र ये बन सकते हैं
1. संग्रह से होने वाले कुपरिणामों का पुनः पुनः चिन्तन । 2. आसक्ति से होने वाले मनोकायिक रोगों का पुनः पुनः चिन्तन । 3. अधिक संग्रह से होने वाली सामाजिक प्रतिक्रियाओं और हिंसात्मक उत्तेजनाओं
का पुनः पुनः चिन्तन। 4. आसक्ति अथवा मूर्छा को कम करने के लिए संकल्प और सुझाव का प्रयोग। 5. त्याग की चेतना को जागृत करने वाले प्रयोग।
असत्य, अस्तेय और अब्रह्मचर्य-ये आत्म-साधना के ही विघ्न नहीं हैं, ये समाज व्यवस्था के भी कण्टक हैं। समाज की सुव्यवस्था के लिये पांच अणुव्रत अनिवार्य है
अहिंसा - अनावश्यक हिंसा का वर्जन। सत्य - समाज व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने वाले असत्य का वर्जन । अस्तेय- व्यावसायिक और आपराधिक चोरी का वर्जन। अपरिग्रह- इच्छा का परिमाण, व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा। ब्रह्मचर्य-काम वासना का संयम।
ये व्रत आध्यात्मिक विकास के लिए जितने उपयोगी हैं, समाज व्यवस्था के लिए भी उतने ही उपयोगी हैं। इनकी उपयोगिता को अस्वीकार करने वाले समाज में व्यक्ति सुखशांति से नहीं जी सकता। हर मनुष्य में हिंसा और अहिंसा, सत्य और मिथ्यावाद, चौर्य और अचौर्य, अब्रह्मचर्य और ब्रह्मचर्य, परिग्रह और अपरिग्रह - दोनों प्रकार के बीज विद्यमान हैं। इनका अंकुरण कारण सामग्री सापेक्ष है।
कारणों की मीमांसा प्राचीनकाल में भी की गई है । वर्तमान के वैज्ञानिकों ने कुछ नई खोजें भी की हैं। उनके अनुसार नाड़ीतंत्र, ग्रंथितंत्र और जैवरसायन हिंसा और अहिंसा के बीजों को अंकुरित करने में निमित्त बनते हैं। सामान्य धारणा यह है साम्प्रदायिक कटुरता के कारण साम्प्रदायिक हिंसा होती है। वैज्ञानिक अवधारणा के अनुसार, साम्प्रदायिक कट्टरता मस्तिष्कीय विकार अथवा मस्तिष्कीय रोग है। मस्तिष्क विद्या के अनुसार मस्तिष्क की तीन परतें हैं
___ 1. लिम्बिक सिस्टम, 2. रेप्टेलियन मस्तिष्क, 3. निओ-कार्टेक्स 2 STILI TI
TITIIIIII तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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