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________________ उपर्युक्त भाषा वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में यह स्पष्ट है कि जैनधर्म पहले पूर्व यानी बिहार में ही उत्पन्न हुआ और यहाँ से पश्चिम तथा दक्षिण भारत में फैला एवं वहाँ ही उसके साहित्य का प्रथम संस्करण हआ । इस दृष्टि से बिहार के मगध-पाटलिपुत्र को बहत बड़ा श्रेय है कि यह जैन-धर्म और उसकी भाषा प्राकृत के उद्भव और विकास का आदि कारण बना और इसने पश्चिम को जैन साहित्य तथा संस्कृति के विस्तार-केन्द्र होने का गौरव प्रदान किया। ___ अन्त में हम बिहार के गया जिले की बराबर पहाड़ी और नागार्जुनी पहाड़ी के प्राप्त अभिलेखों की प्रतिलिपि प्रस्तुत कर रहे हैं। ये दोनों अभिलेख प्राकृत-भाषा में उत्कीर्ण हैं। बराबर पहाड़ी का अभिलेख ईस्वी पूर्व 272-232 का है तथा नागार्जुन की पहाड़ी का अभिलेख ईस्वी पूर्व 232 का, इन दोनों अभिलेखों की मूललिपि ब्राह्मी है। प्राकृत के विकास में बिहार की देन के अनुसन्धानात्मक अध्ययन के क्रम में इन दोनों अभिलेखों का बहुत अधिक महत्त्व है ये दोनों अभिलेख डॉ. बूलर, डॉ. लूडर्स और डॉ. हुल्स के द्वारा भाषा वैज्ञानिक गवेषणा के क्रम में अनेकशः चर्चित हुए हैं। यहां ये दोनों अभिलेख प्रसिद्ध पुरक्तत्वान्वेषी डॉ. राजबलि पाण्डेय की प्रसिद्ध पुस्तक हिस्टोरिकल एण्ड लिटरेरी इन्सक्रिप्शन्स, के पू. 41-42 से यथा-संकलित रूप में उद्धृत हैं। विशेष विवरण के लिए उक्त पुस्तक द्रष्टव्य है। बराबर पहाड़ी का अभिलेख 1. ला जिना पियदसिना दुवाडस (वस्थाभिसितेना) . 2. इयं निगोहकुमा दिना आजीविकेहि (II) (2) 1. ला जिना पियदसिना दुवा 2. डसवसाभिसतेना इयं 3. कुभाखलतिक पवतसि 4. दिना आजीविकेहि (3) 1. लाज पियदसी एकुनवी 2. सतिवसाभिसिते जल घो 3. सागमथात मे इयं कुभा 4. सुथियेख (लतिक) (पवतसि) दि 5. ना (II) नागार्जुनी (बराबर) पहाड़ी अभिलेख 1. वहियक (1) कुभा दष्लथेन देवानंपियेना 2. आनंतलियं अभिषितेना (आजीविकेहि) 3. भदंतेहि वाण... निषिदियाये निषिठे 4. आ चंदम फूलियं (II) 46 MININNINNI तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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