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जैन दर्शन में सूक्ष्म जीवों की स्थिति
-डॉ. अनिल कुमार जैन
(1) प्रस्तावना
___ जीवों को विज्ञान में मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया है-वनस्पति और पशु। लेकिन बहुत से ऐसे सूक्ष्म-जीव हैं जो पूर्णतः न तो वनस्पति के लक्षणों वाले हैं और न ही पूर्णतः पशु के लक्षणों वाले ही हैं। वे एक तीसरा वर्ग ही बनाते हैं। आज हम इन सूक्ष्म जीवों के बारे में काफी जानते हैं। जैन दार्शनिकों ने भी जीवों के बारे में विस्तार से चर्चा की है तथा उन जीवों को अनेक वर्गों में विभाजित भी किया है। यहाँ तक कि उन्होंने उन सूक्ष्म जीवों की चर्चा भी की है जिन्हें हम इलैक्ट्रोन माइक्रोस्कोप से भी न देख सकें। उन्होंने प्रत्येक वर्ग के जीवों के लक्षणों का भी वर्णन किया है। इसके बावजूद भी यह स्पष्ट नहीं है कि विज्ञान में वर्णित सूक्ष्मजीवों को हम क्या मानें-त्रस या स्थावर? यहाँ हम इन सूक्ष्म जीवों के बारे में ही चर्चा करेंगे तथा उन्हें जैन दर्शन के अनुसार वर्गीकृत करने का प्रयत्न करेंगे। (2) सूक्ष्म-जीव
सूक्ष्म-जीव उन सजीवों का वह वर्ग है जो आकार में बहुत छोटे होते हैं तथा जिन्हें हम अपनी खुली आंखों से न देख सकें। ये प्रायः सभी जगह पाये जाते हैंमिट्टी में, पानी में तथा हमारे चारों ओर स्थित वायु में। ये सूक्ष्म जीव अनेक आकार में पाये जाते हैं। सबसे सूक्ष्म तो मात्र कुछ माइक्रोन (1 माइक्रोन-0.001 मि.मी.) साइज के ही होते है तथा उनके अध्ययन के लिए विशिष्ट सूक्ष्मदर्शी यन्त्र की आवश्यकता पड़ती है। बड़े आकार के सूक्ष्म-जीवों को साधारण सूक्ष्म-दर्शी द्वारा देखा जा सकता है। लेकिन कुछ तो इतने सूक्ष्म होते हैं जिन्हें इलैक्ट्रोन माइक्रोस्कोप द्वारा ही देखा जा सकता है।
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IIIIIII तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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