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12. डॉ. जे.पी.एन. मिश्रा, लाडनूं Human Body - A natural Hower of
Anekant principles 13. प्रो. रुण के. मुखर्जी, कलकत्ता अनेकान्तवाद और उसकी अभिव्यक्ति की
शैली स्याद्वाद 14. प्रो. के.सी. सौगानी, जयपुर अनेकान्तवाद का तात्विक और
आध्यात्मिक दृष्टिकोण 15. प्रो. दयानन्द भार्गव, लाडनूं क्या वेदान्त में अनेकान्त किसी सीमा
तक स्वीकार्य हो सकता है? 16. डॉ. सुदीप जैन, दिल्ली वैचारिक सहिष्णुता का सिद्धान्तः अनेकान्त 17. साध्वी शुभ्रयशाजी
संवेगनियंत्रण में अनेकान्त की भूमिका श्री शुभू पटवा, गंगाशहर भगवान महावीर का अनेकान्त
श्रीमती मंजु नाहटा, कलकत्ता चित्रों में अनेकान्तवाद 20. डॉ. एच.आर. दास गोड़ा, बैंगलोर अनेकान्त विलक्षणता 21. प्रो. गोपाल भारद्वाज, जोधपुर महावीर का अनेकान्त : कुछ पक्ष कुछ प्रश्न 22. समणी कुसुमप्रज्ञा
नेतृत्व में अनेकान्त 23. डॉ. प्रद्युम्नशाह, लाडनूं अनेकान्त के सन्दर्भ में प्रो. एन. के. देवराज
के प्रश्न एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ के उत्तर 24. श्री हेमन्तकुमार डूंगरवाल, उदयपुर अनेकान्तवाद : एक समीक्षा
__ इस संगोष्ठी में पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी, युवाचार्य महाश्रमणजी एवं साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी का सान्निध्य रहा । आचार्यश्री ने अनेकान्त दर्शन के सूक्ष्म तथ्यों को समझने के लिए समय-समय उसकी विशद व्याख्या की। अनेक दार्शनिक, सैद्धान्तिक, व्यावहारिक पक्षों से जुड़े प्रश्नों का सटीक समाधान हुआ। आपने कहा कि हम भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव को मात्र रैलियाँ एवं नारों में सीमित न करें। जन-जन में महावीर के दर्शन के विविध पक्ष जैसे अनेकान्त, अपरिग्रह और अहिंसा का व्यापक प्रशिक्षण मिले। संस्थान के कुलपति भोपालचन्द लोढ़ा जी ने इस अवसर पर अनेकान्त की सारगर्भित व्याख्या करते हुए इस संगोष्ठी को जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा तीर्थंकर भगवान महावीर के 2600 वें जन्मकल्याण महोत्सव के प्रसंग पर देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में आयोज्यमान अनेकान्त संगोष्ठियों की श्रृंखला में प्रारम्भिक अनुष्ठान बताया। इस संगोष्ठी की संयोजना में संस्थान के कुलसचिव डॉ. जगतराम भट्टाचार्य, डॉ. बच्छराज दूगड़ तथा डॉ. जिनेन्द्र जैन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा । कार्यक्रमों का संयोजन डॉ. मुमुक्षु डॉ. शान्ता जैन, डॉ. जे.पी.एन. मिश्रा, डॉ. जिनेन्द्र जैन, डॉ. अशोक जैन ने कुशलता पूर्वक किया ।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 20010
N 119
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