SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुनर्जन्म का विरोध करने वाले डॉ. अलेक्जेंडर केलन जैसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों की भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त में श्रद्धा जागृत कर दी। जाति स्मृति का मुख्य फल है असत् से निवृत्ति और सत् में प्रवृत्ति तथा श्रद्धा की प्रगाढ़ता। इस ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति पूर्ववर्ती जन्म की घटनाओं के आधार पर इस निश्चय पर पहुंच जाता है कि चारों गतियों में परिभ्रमण करना, विविध प्रकार के कष्टों का प्रतिसंवेदन करना कर्म का परिज्ञान नहीं होने के कारण ही होता है। यह जानकर वह परिज्ञातकर्मा बनने का प्रयत्न करता है। संदर्भ: 1. अर्हत्वाणी पद्य संख्या 44 रचयिता - आचार्यश्री तुलसी 2. दसवेंआलियं, अध्ययन 88 गाथा 39 3. गीता-अध्याय-1 श्लोक 11 4. आयारो श्रु 1, अ 1, उ.1 सूत्र 3 का भाष्य 5. अर्हत्वाणी-पद्य संख्या-44 6. उत्तरज्झयणाणि-अ 8 आमुख पृष्ठ संख्या 19 7. सुश्रुत संहिता, शरीर स्थान 21561 8. आयारो वृत्ति पत्र 20 9. आयारो भाष्य पृष्ठ 21 10. उत्तरज्झयणाणि-अ. 9 गा 1,2 11. उत्तरज्झयणाणि अ. 19 गा. 5 से 8 तक 12. छदमस्थ री छोल 13. उत्तरज्झययाणि-अ 13 आमुख पृष्ठ-311 14. आयारो-श्रु 1, अ 1, उ 1, सूत्र 8,9 तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 ATTITINITINITITIVITITISINITIN 117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524606
Book TitleTulsi Prajna 2001 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy