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________________ सामयिकी पंचाणुव्रतों में शिक्षा-मूल्य और सामयिक सन्दर्भ --- प्राचार्य निहालचन्द जैन, बीना यह सुनिश्चित है कि शिक्षा ज्ञान - नेत्र होते हैं। शिक्षा से मनुष्य पशुता से प्रभुता की ओर बढ़ता है। लेकिन यह शिक्षा केवल बौद्धिक कसरत नहीं होनी चाहिए। जीवन के शाश्वत नैतिक मूल्यों की धरती से उसका अंकुरण फूटना चाहिये। आज की शिक्षा मस्तिष्क को स्वस्थ और सतर्क रहने की बात करती है। उसमें हृदय की भाषा पढ़ने की सम्भावना प्रायः लुप्त होती जा रही है। आज की शिक्षा हृदय/भावना/और आत्मा की इबारत से शून्य होती जा रही है। आज की शिक्षा जीवन-मूल्यों के संरक्षण और विकास में कितनी सहयोगी है? इस ज्वलंत प्रश्न पर विचार किया जाना आवश्यक है। विगत बीसवीं सदी में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जितनी खोजें हुई हैं विगत एक वर्ष में इतनी नहीं हुई। “सुपर कम्प्युटर" मानव मस्तिष्क की चुनौती बनकर उद्योगजगत में क्रान्ति कर रहा है। फिर भी मस्तिष्क की अपरिमित शक्ति की थाह नहीं 1 Telepathy, Pronic Healing and Collective Conciousness FART आध्यात्मिक क्षमता के प्रमाण हैं। आज परमाणु अस्त्रों की होड़ ने शिक्षा के बदलते स्वरूप पर विचार करने के लिये राजनीति का दरवाजा खटखटाया है। फिर भी यह सुनिश्चित है कि आज की यह शिक्षा, शान्तिप्रिय मानव की समाज संरचना करने में अपने को असहाय पा रही है। मैकाले द्वारा गढ़ी गई शिक्षा ने विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की एक अच्छी भीड़ बढ़ा ली है, परन्तु डिग्री देने वाली इस शिक्षा का जीवन और जीवन-मूल्यों से कोई सम्बन्ध नहीं रह गया है। तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2000 38 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524605
Book TitleTulsi Prajna 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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