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________________ हमारा अहोभाग्य है कि हमें जीवन में बार-बार उद्बोधन मिलता है- 'उठ्ठिए णो पमाइए' अनेक ऐसे निमित्त मिलते हैं जो उत्सव, आयोजन, धार्मिक अनुष्ठान या पर्व बनकर भीतर के उपादान का शोधन करते हैं। भगवान महावीर की 26 वीं जन्मशती ऐसी ही एक सार्थक प्रस्तुति है जिसने फिर एक बार आह्वान किया है-स्वयं को सोए से जगाने का। ___ गीता में भगवान ने कहा था-जब-जब संसार में दुःख, अशांति, विपदा होंगे, मैं पुनः जन्म धारण करूंगा। आज सम्पूर्ण विश्व हिंसा, आतंक, क्रूरता, अन्याय, शोषण अनीति की आग में झुलस रहा है। रोटी, मकान, कपड़ा, शिक्षा, चिकित्सा एवं रोजगार की समस्या से भी अधिक समस्या बन गई है आवश्यकता और आकांक्षाओं की अन्तहीन दौड़। ऐसे में महावीर का पुनर्जन्म हम सब चाहेंगे। मगर जैन परम्परा में महावीर का पुनर्जन्म संभव नहीं है, क्योंकि वे जन्म मृत्यु से मुक्त सिद्ध बन चुके हैं। अतः हम भगवान महावीर की इस जन्मशती को ही अपने पुनर्जन्म का निमित्त बना लें ताकि हमारे भीतर जीवन का दर्शन अवतरित हो जाए। आज से 26 वर्ष पहले पूरे जैन समाज ने भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी पर बैठकर अनेक मुद्दों की रचनात्मक सोच को निर्णय में बदला था, आज उस दिशा में शेष बचे कार्यों को नए जोड़ के साथ लक्ष्य तक पहुंचाना है। एकता, संगठन, सौहार्द, समन्वय, साधर्मिक भावों से जुड़कर आज जो सह-चिन्तन एवं सह-कर्म कर सकेंगे, उनका प्रभाव, उनकी फलश्रुतियां अवश्य नए पदचिन्ह बनाएगी। आज जरूरत कलम के तेज धार की, भाषण के तीखे तेवर की, जोरदार नारों की और बड़े-बड़े वायदों की नहीं है, आज अपेक्षा सिर्फ इतनी सी है कि हम स्वयं आईने में अपना अक्श देखना सीख जाएं ताकि औरों को पूछना न पड़े कि मैं कितना सुन्दर हूं? एक ही प्रभु की पूजा करने वाले हम विभक्तियों में न बंटे कि कोई हमारे वजूद को ही मिटाने लगे। यही समय है, पूरा जैन समाज सापेक्ष-चिन्तन का विकास करे। अनाग्रही मन की साधना साधे। सबमें सबका हित देखे। जैन एकता की सही पहचान बने ताकि भावी पीढ़ियां हम पर अंगुली कभी न उठाये। इस वर्ष 'तुलसी प्रज्ञा' भी भगवान महावीर के अहिंसा और अनेकान्त विषय पर शोधपरक सामग्री प्रकाशित करना चाह रही है। विद्वानों एवं शोधार्थी प्रबुद्धजनों से सादर निवेदन हैं कि अपने सारगर्भित सामयिकी आलेख भेजकर इस लघु प्रयत्न-चिन्तन को सार्थक ऊंचाई दें। -मुमुक्षु शान्ता तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 NITIONALITY IIT 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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