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________________ सम्पादकीय फिर एक दुर्लभ अवसर मिला है महावीर एक व्यक्ति नहीं, संस्कृति है। उनका सम्पूर्ण जीवन, दर्शन, विचार, सिद्धान्त और साधना सत्य की तलाश में आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी आर्षवाणी में युगीन समस्याओं का सटीक समाधान है। उन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त जैसे ऋषिमंत्र देकर मानवीय मूल्यों का योगक्षेम किया है। अहिंसा के द्वारा प्राणी पदार्थ, प्रकृति, परिवेश और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होकर सह-अस्तित्व और विश्वमैत्री के संस्कारों में जी सकता है। अपरिग्रह के द्वारा मनुष्य इच्छाओं का संयमन और पदार्थों का सीमाकरण कर आवश्यकता, आकांक्षा और उपादेयता के बीच विवेक चेतना जगा सकता है। अनेकान्त के द्वारा व्यक्ति सत्य की खोज में पारदर्शी सोच, सापेक्ष-दृष्टिकोण, अनाग्रही मन का निर्माण कर लक्षित उद्देश्य मंजिल तक पहुंच सकता है। भगवान महावीर के जीवन-दर्शन के प्रमुख उपदेशों की यह त्रिपुटी मनुष्य के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह त्रिपुटी एक दूसरे से जुड़ी है। अपरिग्रही चेतना जागने पर अहिंसा स्वतः वहां जन्म लेती है। अहिंसा - अपरिग्रह की समन्विति में अनेकान्त भी सहज फलित होता है। क्योंकि अनेकान्त कोई दर्शन, सिद्धान्त या शास्त्र नहीं, एक विचार है, जीने की शैली है। अनेकान्त व्यक्तित्व विकास की प्रयोगशाला है। सन 2001 में सम्पूर्ण जैन समाज भगवान महावीर की 26 सौ वीं जन्म जयन्ती मना रहा है। सभी सम्प्रदायों में इस प्रसंग पर विविध योजनाएं निर्णय बनकर क्रियान्विति की ओर बढ़ रही हैं। दिल्ली में जैन समाज की राष्ट्रीय समिति का गठन हुआ है। इस वर्ष को अहिंसा वर्ष भी घोषित किया गया है । इसी परिप्रेक्ष्य में आचार्य श्री महाप्रज्ञ के दिशानिर्देशन में अनेकान्त' विषय पर जैन विश्व भारती, संस्थानमान्य विश्वविद्यालय, लाडनूं भी व्याख्यानमाला एवं सेमीनार समायोजित कर रहा है। देश विदेशों के 101 विश्व विद्यालयों में प्रशिक्षित प्रवक्ताओं को भेजकर व्यापक स्तर पर प्रचारप्रसार-कार्य करने का दायित्व स्वयं संस्थान ने स्वीकार किया है। इस दिशा में संस्थान का सभी विश्वविद्यालयों से सक्रियता के साथ सम्पर्क साधा जा रहा है। तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 ATWIT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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