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सामयिकी चिन्तन
संघर्ष निराकरण एवं मानवाधिकार
डॉ. बच्छराज दूगड़
मानवाधिकारों का सीधा सम्बन्ध संघर्ष से नहीं है लेकिन संघर्षों के दौरान मानव अधिकारों का अत्यधिक महत्त्व है। मानव अधिकारों से यहां हमारा अभिप्राय उन अधिकारों से है जो संयुक्त राष्ट्र और क्षेत्रीय संगठनों द्वारा स्वीकृत किये गये हैं । इनमें इण्टरनेशनल बिल ऑफ राइट्स, यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1966 में अंगीकृत), कन्वेंशन फॉर दी एलीमिनेशन ऑफ रेसियल डिस्क्रिमिनेशन (1965), द कन्वेंशन अगेन्स्ट स्लेवरी और कन्वेंशन अगेन्स्ट जेनोसाइड सम्मिलित हैं ।
मानवाधिकार व्यवस्था की विषयवस्तु
अधिकारों को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - 1. स्वतंत्रता (freedom) और 2. मांग (Demand) । स्वतंत्रता का सम्बन्ध मानवीय अखण्डता से है। स्वतंत्रता में स्वेच्छाचारी प्रतिबंधों या वैयक्तिक स्वतंत्रता से वंचित करने से स्वतंत्रता, यातना, क्रूरता के अन्य तरीकों व अमानवीय व्यवहार से मुक्ति तथा इससे भी अधिक एक व्यक्ति के जीवन को छीन लेने से स्वतंत्रता आदि सम्मिलित होते हैं । इनके साथ ही कार्य की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति व संघ बनाने की स्वतंत्रता भी इसमें निहित है। कार्य की स्वतंत्रता इस रूप से दी गई है जिससे दूसरों के अधिकारों का भी सम्मान हो सके ।
मानव अधिकारों में जो मांगें सम्मिलित की गईं हैं, वे कुछ भिन्न प्रकृति की हैं । इनमें राज्य सत्ता द्वारा व्यक्तियों या समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसा से सुरक्षा की तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - सितम्बर, 2000
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