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________________ प्रवचन पाय - - पदार्थ संग्रह की चेतना का परिष्कार आचार्य महाप्रज्ञ आत्मा अदृश्य है और शरीर दृश्य है। शरीर के लिए आवश्यक है पदार्थ । पदार्थ की प्राप्ति के लिए आवश्यक है धन, परिग्रह, संग्रह । यह एक स्पष्ट आवश्यकता का वलय है। धन के बिना पदार्थ की प्राप्ति नहीं तो पदार्थ के बिना जीवन का संचालन नहीं। जीवन के बिना शरीर का कोई अर्थ नहीं। कैसे परिग्रह से मुक्ति पाई जाये? कठिन प्रश्न है और संभव भी नहीं कि पदार्थमुक्त कोई जी सके और बिना साधन के पदार्थ मिल जाए। यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें से निकला नहीं जा सकता। सहज प्रश्न होता है कि परिग्रह को त्याज्य क्यों माना जाए? जब पदार्थ त्याज्य नहीं है, छोड़ा नहीं जा सकता तो फिर परिग्रह को, संग्रह को कैसे छोड़ा जा सकता है? यदि परिग्रह केवल जीवन-यात्रा निर्वाह के लिए होता, आवश्यकता पूर्ति के लिए होता तो उस पर इतना दीर्घकालीन चिन्तन करने की आवश्यकता शायद नहीं होती। आवश्यकता बिल्कुल गौण हो गयी, सुविधावाद, उपभोग और विषय के प्रति आसक्ति-मूर्छा, ये मुख्य बन गईं तब परिग्रह के विषय में चिन्तन करना आवश्यक हो गया। अहिंसा पर चिन्तन किया तो एक जटिल समस्या सामने आई-हिंसा करना मनुष्य का स्वभाव है या किसी प्रयोजनवश हिंसा करता है? यदि स्वभाव है तो फिर अहिंसा का सिद्धान्त बहुत ज्यादा सार्थक नहीं होगा। मनुष्य किसी प्रयोजनवश हिंसा करता है तो उस प्रयोजन की खोज होनी चाहिए। प्रयोजन पर जब ध्यान तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-सितम्बर, 2000 ANINITIALIY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524603
Book TitleTulsi Prajna 2000 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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