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किसने देखा अन्त वृत्ति का
किसने देखा सदा वसन्त। अंतहीन को सांत बनाता
वही वस्तुतः होता संत॥ - अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
हेमराज शामसुखा
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