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________________ गुरुदेव के काव्यों में रस-परिपाक मुनि विमल कुमार किसी संस्कृत कवि ने वक्तृत्वं च कवित्वं च, विद्वत्तायाः फलं विदुः । __ शब्दज्ञानादृते तन्न, द्वयमप्युपपद्यते ॥ वक्तृत्व और कवित्व इन दोनों को विद्वता का फल माना गया है। विद्वता का संबंध ज्ञान से हैं। अनेक विषयों का ज्ञान वक्ता की वक्तृत्व शक्ति को और कवि के कवित्व-बल को तेजस्वी बनाता है। वक्तृत्व और कवित्व दोनों का आधार शब्दज्ञान है। शम्दज्ञान के बिना न वक्तृत्व में निखार आता है और न कवित्व में। भावों को व्यक्त करने का साधन शब्द ही है । जिस व्यक्ति का शब्द ज्ञान जितना समृद्ध होगा वह उतना ही अपने भावों को अच्छे ढंग से व्यक्त करने में समर्थ होगा। आचार्यश्री तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के नवम आचार्य थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । उनका तेजस्वी व्यक्तित्व अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था। वे एक अच्छे गायक, वक्ता, लेखक, कवि, चिंतक और साहित्यकार थे। उनका ज्ञान समृद्ध था। उनकी सृजनात्मक शक्ति भी बेजोड़ थी। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनके द्वारा रचित ग्रंथों को हम भाषा की दृष्टि से तीन भागों में बांट सकते हैंसंस्कृत, हिन्दी और राजस्थानी। इन तीनों भाषाओं में रचित ग्रंथ भी गद्य और पद्य रूप दो भागों में विभक्त हैं। पद्यात्मक ग्रंथों में संस्कृत भाषा में शिक्षा षण्णवति, कर्तव्य षत्रिंशिका, पञ्चसूत्र, कालू भक्तामर स्तोत्र, संघ षट् त्रिंशिका, चतुर्विंशति जिनस्तवनम् आदि रचनाएं हैं। हिन्दी भाषा में पानी में मीन पियासी, भरत मुक्ति, श्रावक संबोध, आचार बोध, संस्कार बोध, व्यवहार बोध, नंदन निकज आदि रचनाएं हैं। राजस्थानी भाषा में कालूयशोविलास, माणक महिमा, डालम चरित्र, मगन चरित्र, मां वदना, चंदन की चुटकी भली, सेवाभावी, सोमरस आदि रचनाएं हैं । पद्यात्मक ग्रंथों में आपकी काव्यात्मक प्रतिभा विशेष रूप से उभर कर आई है। काव्य में भावों के साथ-साथ अलंकार और रस का भी अपना विशेष महत्व है। कवि जिन भावों को प्रकट करना चाहता है यदि वह उन भावों के साथ एकात्मकता स्थापित कर लेता है तो उसकी कृति में सजीवता आ जाती है। पाठक भी उन्हीं भावों में बह जाता है । रस भावों के साथ एकात्मकता स्थापित करता है। इस दृष्टि से रस का विशेष महत्व है । तुलसी प्रशा, लाडनूं : खंड २३, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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