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________________ नगर बनारस जहां विराजै, बहै सुगंगा गहर गंभीर । उज्जल जल करि शोभा मंडित परे निवारे किस्ती वीर ॥ कंचन रत्न जड़ित अति उन्नत, स्वेत वरन पुल लसै सुधीर ।। वन उपवन करि शोभा सोभित अरु विसराम सुना के तीर ।। रूप के रंग मानी, गंग की तरंग सम, इन्द दुति अंग ऐसे जल सुहात है, ससिकी सी किणि किधों, मेह तट झरनि किंधौ, अंबर की मनि किधों मेघ वरषात है, हीरा सम सेत छबि हरि लेत किंधौ मुक्ता दुति देषि मन मरसात है सिव तिय अपने पति के सिंगार देखि, करतु कटाछु, ऐसे चमर फररात है। तीर्थकर पार्श्वनाथ के जन्म महोत्सव के समय सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण है। महाकवि दौलतराम मां बामा के घर में इस जन्मोत्सव का सजीव चित्रण करते हुए कह रहे हैं कि वामा घर बजत बधाई, चलि देखि री माई । सुगुन रास जग आस भरन तिन, जने पार्श्व जिनराई। श्री ही धृति कीरति बुद्धि लक्ष्मी, हर्ष अंग न माई ॥ सांडव नृत्य नटत हरिन तिन, लख-नख सुरी नचाई । किन्नर कर-घर बीन बजावत, दगमन हर छवि छाई ।। "दौल" तासु प्रम की महिमा सुर, गुरु पं कहिय न जाई । जाके जन्म समय नरकन में नारकि सातापाई ।। तीथंकर पार्श्वनाथ के गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान, मोक्ष-इन पांच कल्याणकों को ध्यान में रखकर १७ वीं शताब्दी के "वाचक जयनिधान" कृत वाराणसीपार्श्वनाथ स्तवनम् के कुछ पद बड़े ही महत्वपूर्ण हैं' पास जिणेसर वंदियई, जसु मुख पूनिमचंदी रे। सामल वरण सुहामणउ, पेखत होई आणंद रे ॥१॥ पूरब देशि वाणारसी निधिरस रस ससि (१६६९) मानइ रे । पास जिणंद जुहारिया, संवच्छरि इक तानइ रे ॥८॥ अरि करि हरि जल केसरी, रोग जलण भय जाए रे । पास जिणेसर ध्यावतां, सुख संपति घरि थाए रे ।।९।। "जयनिधानवाचक" भणइ, पास चरण चित लाई रे । काय अनइ वचनइ करी, अहनिसि तुम्ह सेवा भाई रे ॥१०॥ महाकवि दौलतराम ने तीर्थंकर पाश्वनाथ के दर्शन करने से हुई सुखद आत्मानुभूति को कोमल पदावली में इस प्रकार व्यक्त किया है' पारस जिन चरण निरख, हरख यों लहायो । चितवन चन्दा चकोर ज्यों प्रमोद पायो । ४४ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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