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________________ खमाज पाट में नि कोमल और शेष स्वर शुद्ध हैं। इस घाट से उत्पन्न होने वाले राग खमाज, देश, सोरठ आदि के आरोह में शुद्ध निषाद का प्रयोग किया जाता है । इसी प्रकार कल्याण से राग, केदार, हमीर आदि ९ स्वरों वाले रागों की उत्पत्ति भी विचारणीय है । इन रागों में दूसरे थाटों की झलक भी दृष्टिगोचर होती हैं ? रागों के वादी संवादी राग के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए वादी-संवादी स्वरों का सर्वाधिक महत्त्व है । वादी स्वर को राजा एवं संवादी स्वर को मंत्री कहा गया है। इन दोनों स्वरों का संवाद ९ श्रुत्यांतर मध्यम भाव और १३ श्रुत्यांतर पंचम भावानुसार रागों का स्वरूप प्रकट किया जाता है। पाश्चात्य विद्वानों ने कम्पन संख्या के आधार पर मध्यम भाव और ३ पंचम भाव निर्धारित किये हैं । इस सिद्धांत को भरत खण्डेजी ने भी स्वीकार किया है । उपर्युक्त सिद्धांतानुसार यहां भरतखण्डेजी के प्रथम थाट विलावल द्वारा उत्पन्न होने वाले ध-वादी और ग-संवादी वाले श्रुत्यांतर पर विचार करते हैंविलावल थाट, सभी स्वर शुद्ध श्रुतान्तरानुसार स्वरों का क्रम सा ४ रे ३ ग २ म ४ ध ३ नि २= २२ । मध्यम भाव ९ श्रुत्यांतर ग २४ प ४ ध = १० श्रुत्यांतर है । पंचम भाव १३ श्रुत्यांतर : २४४३ नि = १३ श्रुत्यान्तर निषाद है । उपर्युक्त श्रुत्यांतर में ग और ध का संवाद नहीं बनता है । अब ध और ग के संवादात्मक स्वरूप पर विचार करते हैं । मध्यमभाव-ध ३ नि २ सा ४ रे = ध, स्वर ९ व्युत्यांतर पर रे को संवाद कर रहा है । ९ श्रुत्यांतर पंचम भाव :-ध ३ नि २ सा ४ रे ३ ग = १२ १३ श्रुत्यांतर पंचम भाव में ध से ग १२ श्रुत्यांतर पर है अतः भरतखण्डेजी द्वारा ध और ग अथवा ग और ध संवाद वाले समस्त राग चाहे वे किसी भी घाट में हों बे वादी - संवादी की दृष्टि से गलत हैं । शुद्ध एवं विकृत स्वर - भारतीय स्वर - सप्तक की स्थापना प्राचीन विद्वानों ने २६ श्रुतियों को आधार मानकर निम्न प्रकार से की है चतुञ्चतुञ्चतुश्चैव षड्जमध्यमपण्चमाः । द्वे निषादगांधारी त्रिस्त्रि ऋषभचैवतो ॥ अर्थात् सा, म, प की चार, चार, ग, नि स्वरों की दो-दो और रे, ध की तीन-तीन श्रुतियां हैं। इसी सिद्धान्त के अनुसार भरतखण्डेजी कोमल, तीव्र एवं शुद्ध कुल १२ स्वरों की स्थापना निम्न प्रकार से करते हैं ४९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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