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________________ पांत के कारण समाज में विषम परिस्थिति बनने लगी । इन सब दोषों को मिटाने के लिए अहिंसा, करुणा और दया के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे बौद्ध धर्म की लोकप्रियता बढ़ने लगी और मौर्य काल में सम्राट अशोक के समय वह राज धर्म के रूप में प्रतिष्ठिन हुआ। सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बुद्ध वृक्ष के पौधे को लेकर लंका में बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ भेजा । लंका का राजा उनसे बहुत प्रभावित हुआ और उसने भी बौद्ध धर्म को राज धर्म के रूप में स्वीकार किया। बौद्ध धर्म के अनुयायियों की निरंतर वृद्धि होती गई। भारत में चित्रकला, शिल्प एवं साहित्य पर इसका गहरा प्रभाव परिलक्षित है। अजन्ता, एलोरा एवं बाघ की गुफाओं में अमूल्य दीवालों पर चित्र अंकित है । स्तूप एवं मंदिरों में अत्यन्त प्रभावशाली मूर्तियां दृष्टिगत होती हैं । बौद्ध साहित्य का परवर्ती साहित्य पर गहरा प्रभाव जो आज तक के साहित्य में परिलक्षित होता है । इसके अतिरिक्त बाहरी देशों में भी जहां-जहां बुद्ध का उपदेश पहुंचा वहां वह श्रद्धा से अपनाया गया और बौद्ध धर्म समस्त विश्व में अग्रसर होता गया। बौद्ध धर्म का दक्षिण पूर्व एशिया में व्यापक रूप से प्रचार हुआ। प्रथम भारतीय बौद्ध इंडोनेशिया में प्रथम से द्वितीय शती के मध्य पहुंचा था और उसने हीनयान धर्म का प्रचार किया । धीरे धीरे आठवीं शती तक महायान धर्म को व्यापक रूप में अपनाया जाने लगा। इंडोनेशिया से थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, बोरोनियों इत्यादि द्वीपों में बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार होने लगा। इंडोनेशिया से बौद्ध धर्म, चीन की ओर अग्रसर हुआ । चीन में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता निरंतर बढ़ती गयी और बहुत तीर्थ यात्री इंडोनेशिया होते हुए भारत की ओर आने लगे । बहुत से यात्री इंडोनेशिया में रूक जाते थे और कई दिन वहां ठहकर बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त करते थे । चीन के विख्यात संत फाहियान एक समुद्री तूफान में फंस गये थे और १४४ ए० डी० में जावा द्वीप में पहुंच गये । वे वहां पर पांच माह तक रहे उसके पश्चात भारत के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने भारत में बौद्ध तीथों का भ्रमण किया और कई बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया जो लौटते समय अपने साथ ले गये। चीन के प्रख्यात दार्शनिक हवेनसांग ने १४ वर्ष तक भारत में परिभ्रमण किया और अनेक बौद्ध ग्रंथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। इस प्रकार सारे एशिया दक्षिण पूर्व एशियाई स्थलों पर बौद्ध यात्रियों का भारत निरंतर आना जाना लगा रहा था । थाईलैंड, जावा एवं अन्य प्रदेशों में बने हुए मन्दिर एवं पगोडे स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। बौद्ध धर्म का प्रभाव चीन से आगे बढ़ते हुए कोरिया और जापान तक पहुंच गया और जापान में शिंटों धर्म पर बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। यह प्रभाव समीपवर्ती रूस में भी देखा जा सकता है । बौद्ध धर्म का प्रभाव मात्र दक्षिण पूर्व एशिया तक सीमित न रहकर मध्य एशिया में भी पाया जाता है । यहां से तुर्किस्थान होते हुए रूस तक पहुंचा । वहां उत्खनन में आज भी बुद्ध की मूर्तियां प्राप्त होती हैं। पश्चिम में यूनान सीरिया एवं मिश्र तक बौद्ध धर्म का प्रभाव पाया जाता है। बौद्ध धर्म का वैश्विक भावना वास्तव ने सारे विश्व में मानव बन्धुत्व की चेतना को उजागर करने में विपुल खण्ड २३, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524594
Book TitleTulsi Prajna 1998 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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