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________________ अनुक्रमणिका/Contents २६९-२७६ २७७-२८४ २८५-२९२ २९३-२९८ २९९-३०४ ३०५-३१० १. संपादकीय-'अहिंसा' बनाम मानव-प्रशिक्षण परमेश्वर सोलंकी २. अष्टमांगलिक चिह्न और उनके सामूहिक अंकन ए. एल. श्रीवास्तव ३. जैन आगम एवं गीता में समत्व का स्वरूप समणो स्थितप्रज्ञा ४. उपनिषदों में जैन धर्म सुभाषचन्द्र सचदेवा ६. बौद्ध, जैन और वैदिक परम्परा में शील की अवधारणा विनोद कुमार पाण्डेय . ६. 'अहिंसा के विकास में भगवान पार्श्वनाथ का योगदान वीणा जैन ७. 'पंचसमिति'--एक संक्षिप्त निरूपण संगीता सिंघल ८. जैन समाज का भक्ति-संगीत जयचंद्र शर्मा ९. 'अथ'- एक अर्थ विश्लेषण वजनारायण शर्मा १०. जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी ? सागरमल जैन ११. जैन स्थापत्य के तीन भव्य जैन मंदिर परमेश्वर सोलंकी १२. १ को वै पुरूषस्य प्रतिमा प्रतापसिंह १३. भट्टोत्पल : समय और रचनाएं वेद प्रकाश गर्ग १४. आगम सूत्रों की वर्तमान भाषा समणी चिन्मयप्रज्ञा १५. पुस्तक-समीक्षा ३११-३१४ ३१५--३२४ ३२५-३४८ ३४९-२५२ ३५३ -३५८ ३५९-३६६ ३६७-३७४ ३७५-३७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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