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________________ भोगार्थ है। सब यही पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बन्जारा-मत भूल याद रख कि तू मुट्ठी बांधे आया था पसारे हाथ जायेगा। महान कहलाने वाले सिकन्दर की अर्थी को याद रख लाया था क्या सिकन्दर दुनियां से ले चला क्या । ये दोनों हाथ खाली बाहर कफन से निकले ॥ चेतन का आदर्श चेतन होता है, न कि जड़ । प्रकृति जड़ है, तू चेतन है। जड़ प्रकृति से ६३ होना भोग करना उचित है । परन्तु अविद्या है, अज्ञान है । इसमें फंसे मत, लिप्त मत हो परन्तु परमात्मा के साथ ६३ होना विद्या है, ज्ञान है, मोक्ष है, परमानन्द है । तेरा आदर्श जीने के लिए खा (Eat to Live) परन्तु खाने के लिए मत जी (Live to eat) नहीं है। हजारों संख्याओं से कागज़ रंगने पर महीनों प्रयास करने पर मुझे एक सूत्र और मिला, मेरे हाथ लगा कि कोई भी संख्या हो, उसमें एक या एक से अधिक शून्य हों, कहीं पर भी हों तो शन्यों का परित्याग कर बनी संख्या को प्रथम में से दान करने जो संख्या शेष रहेगी वह सदा ९ से विभाजित होगी । ३००५२ संख्या में से शून्य भगाने से ३५२ नई संख्या बनी। इसे जनक संख्या में से दान करो ३००५२--३५२= २९७०० आई। यह ९ से विभाजित है (२) ४०६०२१०० में से शून्य हटाने पर ४६२१ बनी इस को प्रथम में से दान करो। ४०६०२१००-४६२१=४०५९७४७९ आई यह भी ९ से विभाजित है । (३) ३५००१९० में से शून्य भगाने पर ३५१९ बनी इसे ३५००१९०-३५१९ =३४९६६७१ यह भी ९ से विभाजित है । अब योग करो ३०५२+३५२=३०४०४ आई यह भी ९ से विभाजित है। ४०६०२१००+४६२१=४०६०६७२१ यह ९ से विभाजित नहीं है। ३५०० १९०= ३५१९=३५०३७०९ यह भी ९ से विभाजित है । यह तीनों उदाहरण अनायास लिए हैं जहां दान करने में ९ से विभाजित है । परन्तु जहां योग है वहां सब १ से विभाजित नहीं है । अतः दान का योग-संग्रह परिग्रह पर महत्व है। कोई भी संख्या आप लें परन्तु उसमें एक शून्य अवश्य हो, अधिक हो तो भी ठीक है । जैसे २६९०७०५ लें तो शून्य हटाने पर २६९७५ रहा इसको प्रथम में से दान कर दो। २६९०७०५ २६९७५ २६६३७३० यह संख्या जघन नवतीनव वेद मन्त्र के अनुसार ९ से विभाजित है। इसमें फिर एक शून्य है तो पुनः प्रक्रिया करें तो शून्व हटाने पर २६६३७३ रहा पुनः दान किया तो २६६३७३० २६६३७३ २३९७३५७ यह भी ९ से पूर्ण विभाजित है। यदि इसमें शुरू से योग क्रिया करें तो खंड २३, मंक ३ ३५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524593
Book TitleTulsi Prajna 1997 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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