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________________ अशक्त हो कमर झुक जाती है। उसी प्रकार पवनों के ढकोलों के भय से यह पृथ्वी २४ अंश झुक गई। इस प्रकार पृथ्वी की अण्डाकार आकृति अण्डाकार कक्षा, पृथ्वी का अपनी कीली पर झुकाव का वैज्ञानिक समाधान है। वृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी की गति सम होती है। परन्तु अण्डाकार कक्षा में पृथ्वी की गति असम होती है। वर्षों से मैं गणितज्ञों, वैज्ञानिकों से पूछता आ रहा हूं कि समकोण में ९० अंश (degree) क्यों और कैसे होते हैं ? वर्ष में १२ मास, ३० अहोरात्र का मास, अहोरात्र में ८ प्रहर, ६ ऋतुएं का क्या आधार है ? सबका समान एक ही उत्तर था कि ऐसा माना गया है । परन्तु क्यों और कैसे ? किसी ने भी समाधान नहीं किया । वेद, दर्शन आदि के स्वाध्याय से मैंने पाया कि वेद ४, ब्राह्मण ४, वर्ण ४, आश्रम ४, पुरुषार्थ ४, आदि में अंक ४ की व्यापकता है। ऋ. मंत्र (१-१६४-४८) तथा अथर्ववेद मंत्र (१०-८-४) समान हैं जो कहते हैं कि पृथ्वी की गैसीय अवस्था में पृथ्वी तथा पृथ्वी की सौर कक्षा वृत्ताकार थी जो यह मंत्र बैलगाड़ी के लकड़ी के पहिए के समान उपरिलिखित है । ३६०-४४९०, ६x६०, ८४४५, १२४३० में विभाजित कर ४ समकोण, ६ ऋतुएं, ८ दिशाएं, १२ मास के रूप में गणना को कितना सरल बना दिया है। सौर परिक्रमा में पृथ्वी लगभग ३६६ अहोरात्र, चन्द्रमा ३५४ अहोरात्र तो २६६ १३५० =३६० औसत भी वेद मंत्र का समर्थन करता है । क्योंकि ३६६ और ३५४ अंशों में पृथ्वी कक्षा को किसी गणितीय वैज्ञानिक विधि से बांटना संभव नहीं है। इस जटिलता को वेद मंत्र सरलता में बदल देता है। ... खगोल में दूरियां इतनी विशाल है कि वृत्ताकार और अण्डाकार गणना में प्रतिशत अशुद्धि इतनी न्यून होती है कि नगण्य है। यहां वैदिक ज्योतिष के सरलीकरण की महानता है । अथर्ववेद मंत्र (४-२५-६) कहता है-अस्मिन् वेदः निहिता विश्व रूपा कि वेद सब सत्यविद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना सब मनुष्यों का परम धर्म है। ऐसा ही शतपथ ब्राह्मण कहता है-अनन्ता: वै वेदाः कि वेद ज्ञान अनन्त है। जो वेद में है वही सृष्टि में है। जो सृष्टि में देखते हैं वही वेद में लिखा है। वेद सृष्टि की पाठ्य पुस्तक है तो सृष्टि वेद की प्रयोग शाला है। प्रकृति में पृथ्वी की कक्षा अण्डाकार का होना अपना वैशिष्ट्य प्रभाव है। प्रकृति में अभिकेन्द्रीय बल का अपना वैशिष्ट्य है। आपने सामान्य जीवन में इस बल के करिश्मे देखे होंगे। सरकस में बन्द गोलाकार पिंजड़े में मोटर साइकिल का करतब । जब मोटर साइकिल सवार पिंजड़े की छत पर उलटा लटका होता है परन्तु गिरता नहीं है। छत से चिपका सा रहता है। मोटर साइकिल व सवार के भार से उस पर लगे अभिकेन्द्रीय बल कहीं ज्यादा होता जो उसे बल से चिपकाए रहता है। एक लोटा पानी भरा डोर में बन्धा जब ऊर्ध्वाधर वृत्त में घुमाते हैं तो लोटा सिर पर उलटा होता है परन्तु एक बूंद पानी नीचे नहीं गिरता है। जैसे आप सीधी सड़क पर से किसी मोड़ पर जाते हैं साईकिल स्वतः अन्दर की ओर झुक जाती है। मोटर, रेल, २३२ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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