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________________ चारों निकायदेवों ने उन्हें अनेक प्रकार के जल स्नान कराये। शरीर पर विलेपन किया और सुन्दर वस्त्राभूषण पहनाएं जब उन्होंने श्रमण दीक्षा ली। चंदप्पहसिबियाए, मग्गसिरे कसिण दसमि अवरह्न । पढमवए पव्वइओ, छट्टेणं नायसंडवणे ॥२०॥ फिर वे चन्द्रप्रभ शिविका में बैठकर ज्ञातखण्ड वन में आये । इस प्रकार मृगसर कृष्णा दशमी को अपराह्न में भगवान महावीर ने प्रथम वय में प्रव्रज्या ली और छठी तप किया। कम्मार गामबाहि, वय पढम निसाइएय किर सक्को। वारइ गोवं वागरई, निरूवसग्गं करे भंते ।।२१।। प्रथम वय में प्रव्रज्या ग्रहण कर भगवान् महावीर कर्मार ग्राम के बाहर आये तो इंद्र ने प्रार्थना की कि हे भन्ते ! बारइ गोवालिया कोई उत्सर्ग न करें-ऐसी व्यवस्था करने की मुझे अनुमति प्रदान करें। तमणिच्छिय तुह निच्छिय, मइणो विहरंत कोल्लयग्रामे । बल भवणे बीयदिणे, पारणयं पायसेणासि ॥२२॥ भगवान ने वह प्रार्थना अस्वीकार कर दी। वे विहार करते हुए कोल्लाग ग्राम आये वहां बल नामक ब्राह्मण के घर उन्होंने छठी तप का पारणा किया। सुरकय विलेवणाई वि, साहिय चउमासमासिते दुहयं । भमराइ कयच्छण तरुण यच्छण थीजणच्छणओ ॥२३॥ दीक्षा समय देवताओं द्वारा किए गए विलेपन ने भगवान् को चार मास से अधिक समय तक दुःख दिया। भंवरों ने शरीर पर बैठकर पीड़ा पहुंचाई। ग्रामीण यवकों ने उसकी मांग की और तरुण स्त्रियों ने कामासक्त होकर प्रार्थना की। पडिकूलसूलपाणि, चंडक्किय चंडकोसिय महिंच। अगणिय नियतणुपीड, पडिबोहियव्वं तुमं भवयं ॥२४॥ हे भगवन् ! तुमने अपने शरीर की पीड़ा को गौण करके प्रतिकूल बने शूलपाणि यक्ष और क्रूरकर्मा चंडकौशिक सर्प को प्रतिबोध दिया । एगरयणीइ वीसं, छहिं मासेहिं विविह उवसग्गे । तुह करिय हरिय सुरस संगमो संगमो जाओ ॥२५॥ भगवान् को एक रात्रि में बीस उपसर्ग दिए गए। छह मास तक विविध कष्ट दिए गए किन्तु उन्होंने संयम का पालन किया और इन्द्र ने उन कष्टों का निवारण किया। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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