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न्यायमिश्रित व्याकरण परम्परा में श्री जयकृष्ण तर्कालंकार का योगदान
6 मङ्गलाराम
महामुनियों द्वारा अनुशासित देवभाषा भाषा संस्कृत कहलाती है-संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः ।' उस भाषा का व्याकरणशास्त्र अति समृद्ध है और शब्दों के साधुत्व का यह ज्ञान मोक्षप्रद है
इयं सा मोक्षमाणानामजिह्मा राजपद्धतिः । वही उस नित्य शब्दब्रह्म रूप परमात्मा की प्राप्ति का उपाय है, क्योंकि इस शब्दब्रह्म की प्रवृत्ति और तत्त्व को जो ठीक समझ सकेगा वही अमृत-ब्रह्म को प्राप्त कर सकता है---
तस्माद्यः शब्दसंस्कारः सा सिद्धिः परमात्मनः ।
तस्य प्रवृत्तितत्त्वज्ञस्तद्ब्रह्मामृतमश्नुते ॥' व्याकरणशास्त्र
विद्वानों ने वेद का अत्यंत उपकारक अङ्ग व्याकरण को माना है और दृष्टअदृष्ट दोनों प्रकार के फलों को देने के कारण व्याकरणाध्ययन को उत्तम तप भी कहा है।
आसन्नं ब्रह्मणस्तस्य तपसामुत्तमं तपः।
प्रथमं छन्दसामङ्गं प्राहुाकरणं बुधाः ।। श्रुतिप्रसिद्ध पुण्यतम आलोक और तम को प्रकाशित करने वाली शब्द नामक ज्योति के साधुत्व ज्ञान के लिये व्याकरणशास्त्र ही सरल मार्ग है--
यत्तत्पुण्यतमं ज्योतिस्तस्य मार्गोऽयमाञ्जसः । घट पटादि का व्यवहार शब्द से चलता है और शब्दों के नि:शेष साधुत्व का ज्ञान बिना व्याकरण के नहीं हो सकता
तत्त्वावबोधः शब्दानां नास्ति व्याकरणादते । व्याकरण अपवर्ग का उपाय तथा पापजनक-अपशब्द रूपी वाणी के मलों की चिकित्सा करने वाला है
। तद्द्वारमपवर्गस्य वाङ्मलानां चिकित्सितम् । इसी कारण व्याकरण को समस्त विद्याओं में पवित्र तथा आदत माना है
पवित्रं सर्वविद्यानामधिविद्यं प्रकाशते ।' आन्तर स्फोट रूप ब्रह्म का ज्ञान व्याकरण से ही होता है
बर २३, अंक १
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