________________
नया गए ।" इसी तरह बारह भावनाओं का मायारो में उल्लेख मिलता है ८. वर्तमान क्षण को प्रेक्षा
वर्तमान क्षण की प्रेक्षा करने वाला साधक अतीत की स्मृतियों व भविष्य की कल्पनाओं में नहीं उलझता । जो वर्तमान क्षण में जीता है वही भावक्रिया पूर्ण जीवन जी सकता है । जातीतमट्ठ ण य आगमिस्सं अट्ठ नियच्छन्ति तहागया उ ।" भगवान् ने कहा - 'खणं जाणाहि पंडिए' साधक ! वर्तमान क्षण की प्रेक्षा करो। क्योंकि इससे कर्म शरीर का शोषण हो जाता है। विधूतकप्पे एयाणुपस्सी णिज्झोसइत्ता खबगे महेसी । एयानुपस्सी का एक अर्थ होता है - वर्तमान में घटित होने वाले यथार्थ को देखना । जो वर्तमान को देखता है वह अप्रमत्त होता है । इसलिए आचारांग कहता है - जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणे ति मन्नेसि । ९ देखना जीवन की सबसे बड़ी कला है। जिसे ज्ञाता दृष्टा उसे आनन्द का स्रोत उपलब्ध हो जाता है । परिस्थिति निर्माण ही इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि है । कहा भी
सारांश में जानना, भाव उपलब्ध हो जाता है, से अप्रभावित मनोभूमि का है
प्रलय पवन संचालित शीत भी जहां चक्रमण नहीं कर पाता, प्रखर पवन प्रेरित ज्वालाकुल प्रज्वल हुतवह नहीं सताता । पूर्ण लोकचारी कोलाहल जहां नहीं बाधा पहुंचाता, ध्यान कोष्ठ में उस संरक्षित देवी का मैं हूं उद्गाता ॥
इस प्रकार आचारांग में स्थान-स्थान पर प्रेक्षाध्यान के महत्त्वपूर्ण सूत्र बिखरे
हुए हैं।
१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
तुलसी प्रशा
www.jainelibrary.org