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________________ 'हस्तिकुण्डी' के दो जैन शिलालेख 'ओसवाल जाति का इतिहास' जो ओसवाल हिस्ट्री पब्लिशिंग हाउस, भानपुरा (इन्दौर) द्वारा सन् १९३४ में वैदिक यन्त्रालय, अजमेर से मुद्रित कराके प्रकाशित किया गया, उसमें (पृ० १८२-१८४) हस्तिकुण्डी के जैन मंदिर लेखों का विवरण छपा है। इस विवरण में एक शिलाखण्ड पर लिखे दो शिलालेखों का विवरण ऐतिहासिक महत्त्व का है। इसलिये उसका परिचय यहां दिया जा रहा है सर्व प्रथम उक्त शिलाखण्ड केप्टन बर्क को मिला था जिसे उसने बीजापुर की एक जैन धर्मशाला में रख दिया था। प्रो० किलहान ने इसकी लिपि को विग्रहराज के शिलालेख सं० १०८० की लिपि से मिलती-जुलती बताया। बाद में महामहोपाध्याय पं० रामकरण आसोपा ने उसे पढ़कर सम्पादित और प्रकाशित किया। एक ही शिलाखण्ड पर ये दो पृथक्-पृथक् लेख उत्कीर्ण हैं। पहला लेख जो संवत् ९९६ तक के विवरण का है वह दस पंक्तियों में है और शिलाखण्ड के नीचे के हिस्से पर है । दूसरा शिलालेख ऊपर की २२ पंक्तियों में है जो संवत् १०५३ का है । पहले लेख में २१ पद्य हैं और दूसरे में ४० पद्य । लगता है, ये दोनों लेख एक साथ ही उत्कीर्ण हुए हैं। पहले लेख के प्रथम श्लोक में जैनधर्म की प्रशंसा है और दूसरे से चौथे श्लोक तक क्रमशः राजा हरिवर्म, विदग्धराज, मम्मटराज, का वर्णन है और लिखा गया है कि विदग्धराज ने आचार्य बलभद्र के उपदेश से हस्तीकुण्डी में एक मनोहर जैन मन्दिर बनवाया और उसके दैनंदिन खर्च के लिए आबक जावक माल पर कर लगाया। यह राज्यादेश सं० ९७३ का है और बाद में माघ बदी ११ सं० ९९६ को मम्मटराज द्वारा उसका समर्थन किया गया है। तदुपरांत जब तक पृथ्वी पर पर्वत, सूर्य, भारतवर्ष, गंगा, सरस्वती, नक्षत्र, पाताल, सागर की संस्थिति है तब तक यह शासन पत्र केशवसूरि की संतति में चलता रहे-का उल्लेख है। दूसरे लेख में कवि का नाम सूर्याचार्य बताया गया है और उसके प्रथम दो श्लोकों में जिनदेव की स्तुति है। तीसरे श्लोक से राजवंश का वर्णन है जो अस्पष्ट हो गया है। हरिवर्मा और विदग्धराज के नामोल्लेख के बाद छठे पद्य में वासुदेव आचार्य के उपदेश से हस्तीकुण्डी में मन्दिर बनाए जाने का उल्लेख है। सातवें पद्य में राजा द्वारा अपने वजन के बराबर स्वर्ण दान किया जाना और आठवें पद्य में विदग्धराज की गादी पर मम्मटराज के बैठने और उसके उत्तराधिकारी धवलराज का वर्णन है। खप २३, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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