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________________ काल होगा ६७०१ ई० पू० । समुद्रगुप्त की आयु ७७ वर्ष ३ मास है तथा इसका जन्म ३४५ ई० पू० हुआ था तथा सिकन्दर से १० वर्ष वय में कम था, अतः समुद्रगुप्त तक कालमान होगा ६३७४+७७) ६४५१ वर्ष ३ मास । अतः समुद्रगप्त को ही सन्द्रकुपतस् मान लेने पर सारी गुत्थियां सुलझ जाती हैं। अतः समुद्रगुप्त ही त्रिलोकसार का कल्की नप हो सकता है। क्योंकि उसको मिलाकर नयसंख्या १५४ होती है । श्री उपेन्द्रनाथ राय ने गर्ग के वराहमिहिर व कल्हण द्वारा उद्धृत आयर्या का अर्थ ठीक ही किया है कि युधिष्ठिर के समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे तथा जब गर्ग ने अपना ग्रन्थ रचा उस समय तक २५२६ वर्ष युधिष्ठिर के समय से बीत गये थे । अतः यह काल अन्य शक संवत् से सम्बन्ध नहीं रखता किन्तु यह युधिष्ठिर शक काल का द्योतक है। महाभद्रेण राजवंश का भारतीय इतिहास में कहीं प्रमुख स्थान नहीं। अतः इसके साथ पिता बैकस से सम्बन्ध जोड़ना उचित नहीं प्रतीत होता है। भले ही समुद्रगुप्त महाभद्रेण वंश का हो। मुझे खेद है कि वृद्धावस्था (८२) तथा वाच्छित पुस्तकों के अभाव में मैं इस विषय में विस्तार से न जा सका, पाठकवृन्द क्षमा करें। टिप्पणी १. स्व० डा० देवसहाय त्रिवेद ने 'सैण्डाकोटस्' को 'सन्द्रकुपतस्' माना है और मिक्रिण्डल द्वारा भी उसे "सन्द्रकुपतस्" ही लिखने का हवाला दिया है । 'इण्डियन क्रोनोलॉजी' में डॉ. त्रिवेद ने सिकन्दर के समकालिक राजाओं में चन्द्रगुप्त-1 और समुद्रगुप्त-गुप्तराजाओं को बी. सी. ३२७ से सत्तारूढ़ बताया है । पुणे से छपे अपने 'भारत का नया इतिहास' में भी उन्होंने नौंवा अध्याय 'समुद्रगुप्त' पर लिखा है किन्तु कालमान नहीं दिया। स्वर्गीय पं० भगवद् दत्त भी गुप्तवंशी सम्राट् समुद्रगुप्त को 'विक्रमांक' मानकर उसे ईसवी पूर्व का शासक मानते हैं। २. वयोवृद्ध लेखक द्वारा महाभद्रेन वंश से अपरिचित होने की बात कही गई है। उसके लिए हम पं. रघुनंदन शर्मा की कृति-वैदिक संपत्ति (मुंबई संस्करण सं. २०१६ पृ० ३८) से Theogony of the Hindns का उदाहरण देना चाहेंगे"The Bactrian document called Dabistan (found in Kashmir and brought to Europe by Sir W. jones) gives an entire register of kings, namely of the Mahabadernes, whose first link rigned in Bactria 5600 years before Alexander's expedition to India and consequently several hundred years before the time given by the खण्ड २३, अंक १ १३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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