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जानकारी बहुत लोगों के लिये अभिनव होगी। मुनिश्री ने २८ नक्षत्रों के भोजन की वनस्पतियों को खोजकर और उन्हें सार्वजनिक बनाकर परोपकार का बड़ा कार्य किया है जो नक्षत्र विशेष में कार्य सिद्धि के लिये नक्षत्र भोजन से लाभान्वित होने का अवसर प्रदान करता है।
इसी प्रकार उनके द्वारा इस कोश में व्याख्यायित वनस्पतियों में एक बीज (गुठली) वाली ३२, बहुबीज वाली ३३, गुच्छ ५३, गुल्म २५, वल्ली ४८, एक शाख वाली लता १०, पर्वक २१ तृस २३, हरित ३०, वलय १७, धान्य २६, जलरूह २७, कुहण (भू फोड़) ११, साधारण शरीर (एक साथ प्राण अपान छोड़ने वाली) ६० और फुटकर ५ कुल ४२१ वनस्पतियों का रोचक वर्णन है। मुनिश्री चंद “कमल" ने इन वनौषधियों में से भी बहुत सी वनस्पतियों की पहचान बता दी है। किन्तु अभी इन सभी औषधियों के द्रव्य गुणों का विधिवत अध्ययन और मूल्यांकन होना शेष है। इस संबंध में वनस्पति वेत्ता और औषध निर्माताओं को आगे आना चाहिए और इस अमोल खजाने का सदुपयोग करना चाहिए।
___ आयुर्वेद जगत् की मान्यता है कि वनौषधियों की प्रत्यक्ष जानकारी गो पालन करने वाले, वनेचर, व्याध और तापस लोगों को होती है। प्रस्तुत कोश में वे सभी वनस्पतियां संग्रहित हुई हैं जो तापस-साधुजनों ने स्वयं अनुभूत और प्रयोग की हैं । निस्संदेह जैन आगमों से निर्व्यहन की गई इन वनौषधियों की संख्या जैन साहित्य को टटोलने से और बढ़ेगी और मुनिश्री चंद “कमल" द्वारा प्रस्तुत यह अध्ययन भी उत्तरोत्तर लोक कल्याण के लिए समृद्ध होता रहेगा । 'जैन आगमः वनस्पति कोश' का यह संस्करण प्राथमिक है इसलिये इसमें परिष्कार और परिवर्द्धन की अपेक्षा भी है । इसमें वनौषधियों के प्रयोग और उनके द्रव्य गुणों के परिचय के साथ-साथ प्रकाशन की आधुनिक विधाएं भी परिपालनीय हैं। आशा है अगले संस्करण में ऐसा किया जायेगा। फिर भी इस अनूठे खजाने को प्रकाश में लाने के लिए जैन विश्व भारती के सभी संबंधित पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता बधाई के पात्र हैं।
-परमेश्वर सोलंको
सय २३, अंक १
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